लघुकथा

अच्छों की चुप्पी से दुनिया बुरी है

अपराजिता बेटी स्नेह। तुम्हारी पीड़ा कष्टदायक है। ससुराल में दुर्व्यवहार आरोप ताने शारीरिक यातना मानसिक चोट आर्थिक संकट भेदभाव पीहर पक्ष पर कटाक्ष से तुम टूट रही हो एवं इतने बड़े परिवार में तुम अकेली स्त्री बस सोचती रहती हो कि तुम किस कन्धे पर सिर रखकर रो लो। अपमान के घुटन की पराकाष्ठा झेलने से तुम्हारे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। अपराजिता चुप मत रहो एवं बोलो। बुरों के कारण दुनिया उतनी बुरी नहीं है जितनी अच्छों की चुप्पी से। कर्तव्य पालन में तुम सक्षम समर्थ हो कर यथाशक्ति निभाने का प्रयास कर ही रही हो फिर बेटी निर्मल पवित्र चरित्र पर गलत लान्छन क्यों सहन कर रही हो। मम्मी पापा को अपनी बिगड़ी स्थिति से अवगत करा दो। ससुराल में तुम्हारे जीवन को खतरा स्पष्ट है इसलिए जब भी ससुराल आना आवश्यक हो तो पति के साथ ही आकर उनके साथ ही वापिस लौट जाया करो। अपना भी जीवन बचाकर रखना एवं अपने गर्भस्थ शिशु का भी। मेरे हस्तक्षेप से समस्याएं नहीं सुलझेगी। तुम शिक्षित भी हो एवं पीहर पक्ष सन्कटमोचन के समान तुम्हारे साथ है ही। स्वयं पर भरोसा विश्वास रखो। मन हल्का करने के लिए दिलीप अन्कल तुम्हारे साथ हैं ही। समय डाक्टर
दवा मरहम है। मार्गदर्शन प्रदान करना मेरा धर्म है। उस मार्ग पर चलना तुम्हारा कर्म है। भरोसा है कि वाट्सएप पर मेरा यह पत्र अन्धेरे में तुम्हें रोशनी देगा। शुभकामना एवं आशीर्वाद।

— दिलीप अन्कल

*दिलीप भाटिया

जन्म 26 दिसम्बर 1947 इंजीनियरिंग में डिप्लोमा और डिग्री, 38 वर्ष परमाणु ऊर्जा विभाग में सेवा, अवकाश प्राप्त वैज्ञानिक अधिकारी