कौन
किसी के दर्द में
अब आँसू बहाता है कौन…
अगर कोई गिर जाये तो
उठाता है कौन?
थिरकते पैरों में बांध देते हैं घुंघरू
अब जिम्मेदारियां उठाता है कौन?
माँ – बाप हुए बूढ़े –
कभी छोटे के यहाँ तो
कभी बड़े के यहाँ…
उनके दर्द को समझता है कौन?
खामोश लबों पर उदासियाँ हजार
तिल-तिल घुटते हृदयों की
आज पीड़ा महसूस करता है कौन?
बाहर से हरे -भरे चमकते – दमकते
दिखते हैं जो महल
वे अन्दर से हो चुके हैं खंडहर
पर उनकी असलियत देखता है कौन ?
प्रेम की भाषा बड़ी अनमोल
पर बोलता है कौन…
सच्ची कलम लिखती है सच-सच
पर पढ़ता है कौन?
— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा