राजनीति

यह तो हमारे लिए सुनहरा अवसर…!

अफजल खान का हिंदवी स्वराज्य पर आक्रमण, यह स्वराज्य पर सबसे गहरा संकट था. कुल जमा दस – बारह वर्ष तो हुए थे, शिवाजी महाराज को स्वराज्य की स्थापना किए हुए. पास में थोड़े बहुत किले थे. आज की भाषा में कहे, तो शिवाजी का राज यह दो – चार जिलों के बराबर भी नहीं था.

ऐसे स्वराज्य को मसलने के लिए, ध्वस्त करने के लिए, महाभयंकर अफजल खान, अपनी तीस – पैंतीस हजार की चतुरंग सेना लेकर निकला था. और स्वराज्य के पास थे, सब मिलाकर कुल छह हजार सैनिक. बिजापुर की आदिलशाही को तो पूरा भरोसा था ही की शिवाजी का ‘विद्रोह’ कुचल दिया जाएगा. किन्तु दिल्ली में बैठे मोगल, अंग्रेज़, पोर्तुगीज, फ्रेंच, डच…. इस सभी को भी पूरा विश्वास था की अब शिवाजी का बचना कठिन हैं. शिवाजी का राज ध्वस्त होना तय हैं. और इसीलिए अनेक मराठा सरदार भी अफजल खान के पक्ष में खड़े हो गए.

परंतु शिवाजी महाराज ने अत्यंत संयम से, उत्तेजित न होते हुए, शांति धारण कर, डरने / घबराने का आभास निर्माण कर, अफजल खान को प्रतापगड़ के नीचे, अर्थात जावली के जंगल में आने के लिए विवश किया. अफजल खान का यह तीस – पैंतीस हजार का विशाल सेना सागर जब ठिय्या देकर बैठा था, तब प्रतापगड के परिसर में स्वराज्य का सैन्य था, मात्र तीन हजार सैनिक !

दिनांक १० नवंबर १६५९ की भरी दोपहर में, शिवाजी महाराज ने, अफजल खान का पेट फाड़कर उसे मार डाला. यहाँ तक की कहानी तो हम सभी सुनते हैं. पर विशेषता तो इसके आगे हैं.

खान को मार के महाराज ऊपर प्रतापगड़ पर आये, वो उनके खून से सने कपड़े बदलने मात्र के लिए. बिना थके, बिना रुके उसी रात को शिवाजी महाराज ने दक्षिण दिशा की ओर धावा बोल दिया. इधर अफजल खान की सेना को निपटाकर सरसेनापति नेताजी पालकर भी कूच कर गए, पूर्व दिशा में – सीधे बिजापुर पर आक्रमण करने. और दोरोजी नाम के सरदार को शिवाजी ने भेजा, पश्चिमी दिशा मे, याने कोंकण प्रांत में. स्वराज्य का यह त्रिशूल, शत्रु का भेद करने निकल पड़ा था.

सारे लोग इसी गलतफहमी में थे, की शिवाजी तो अब तक खतम हो चुका होगा. इसी बीच मराठे अचानक ‘सरप्राइज़ अटैक’ करते हुए छापा मारते थे. एक एक किला, एक एक गढ़ी, एक एक गांव जीतते हुए, वे आगे निकल रहे थे. अफजल खान को मारने के ठीक १८ वे दिन, अर्थात २८ नवंबर १६५९ को शिवाजी महाराज ने कोल्हापुर और उसके साथ अति प्रचंड और मजबूत ऐसा पन्हालगड़ जीत लिया था. नेताजी पालकर, बिजापुर के पास जाकर, सुल्तान को धमकाकर, आदिलशाही का बड़ा सा खजाना लूट कर स्वराज्य में पहुच गया था.

खान को मारने के मात्र अठारह दिनों मे, शिवाजी महाराज ने हिंदवी स्वराज्य, दुगने से भी बड़ा कर दिया था, और समृध्द भी…!

किसी संकट को, अवसर में बदलकर एक लंबी छलांग लगाने का इससे अच्छा उदाहरण इतिहास में नहीं हैं…!

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आज भी ऐसा ही कुछ बड़ा सा अवसर भारत के सामने आकार खड़ा हैं – चीनी वायरस कोरोना अर्थात कोविड – १९ के कारण उत्पन्न हुए संकट के रूप में ! अनेकों को यह संकट लगता होगा. पर हैं यह एक मजबूत अवसर, नियतीने हमारे सामने लाकर रखा हुआ.

कोरोना के बाद की दुनिया पहले जैसी नहीं रहेगी, यह तो निश्चित हैं. यह बहुत बदली हुई दुनिया होगी. आमुलाग्र बदली हुई. सामाजिक, राजनैतिक, पारिवारिक, आर्थिक… सभी क्षेत्रों में आमूलचुल परिवर्तन होगा. अनेक देशों की अर्थव्यवस्था चौपट होगी. अनेक राष्ट्रों को अपनी नीति बदलने के लिए विवश होना पड़ेगा.

इस कोरोना महामारी के फैलने से पहले, चीन यह वैश्विक महासत्ता को टक्कर देने के लिए तैयार था. नए वातावरण, नए परिवेश के अनुसार विश्व में अपने उपनिवेश खड़े करने के प्रयास में था. अफ्रीकन देशों में किया हुआ जबरदस्त निवेश, पाकिस्तान, श्रीलंका, मालद्वीप, बंगला देश जैसे छोटे राष्ट्रों में खड़ा किया अपना इनफ्रास्ट्रक्चर, परियोजनाएं….. इन सब में से, चीन के आर्थिक महासत्ता बनने के इरादे स्पष्ट दिखते हैं.

अभी भी चीन का प्रयत्न वही रहेगा. वही हैं भी. चीन का बहुत ज्यादा नुकसान इस महामारी से नहीं हुआ हैं, ऐसा उसका दावा हैं. अत्यंत अमानुष पध्दति से, चीन ने कोरोना वायरस का सामना किया और शेष विश्व में जब त्राहि त्राहि मची हैं, तब चीन ने अपने देश को पुनः पटरी पर लाया. चीन की यह नीति जारी रहने वाली हैं. पिछलेही सप्ताह, चीन की केंद्रीय बैंक, ‘पीपल्स बैंक’ ने भारत के HDFC Ltd के 1.75 करोड़ शेयर्स खरीद लिए, जो शेअर होल्डिंग के हिसाब से 1.01% हैं. चीन ऐसा कर रहा हैं. चीन ऐसा करता रहेगा. चीन को लगता हैं की इस महामारी से उसको बहुत ज्यादा झटका नहीं लगने वाला हैं.

लेकिन चीन को झटका लगने वाला हैं, वह दूसरे संदर्भ में. संपूर्ण विश्व का जनमत फिलहाल चीन के प्रखर विरोध में हैं. जापान ने अभी घोषणा की हैं की सभी जापानी कंपनियां, जो चीन में उत्पादन करती हैं, वह सब वहाँ का उत्पादन बंद कर के जापान वापस आएंगी या अन्य देशों में जाएंगी. संक्षेप में – चीन नहीं चाहिए. और यह सब करवाने के लिए, जापान सरकार, चीन में काम कर रही सभी जापानी कंपनियों को, वहां से बाहर निकलने के लिए 2.2 Billion US Dollars की सहायता दे रही हैं. अर्थ स्पष्ट है – पैसे लो, पर चीन से बाहर निकलो.

संकट को अवसर में बदलने का, जापान का यह एक अच्छा उदाहरण हैं. जापान और चीन में खानदानी दुश्मनी हैं. इसलिए, जापान सरकार नहीं चाहती थी की जापानी कंपनीयां चीन जाकर उत्पादन करे. किन्तु चीन में उत्पादन सस्ता होने के कारण, और अंतर्राष्ट्रीय बाजार में स्पर्धा के कारण, जापानी सरकार को यह मानना पड़ा.

लेकिन अब नहीं. जापान सरकार ने कोरोना महामारी को अवसर के रूप में लिया, और सभी जापानी कंपनियों को चीन से निकलने के आदेश दिये. जापान 165 Billion US Dollars का माल चीन को एक्सपोर्ट करता हैं और चीन से 137 Billion US Dollars का इम्पोर्ट करता हैं. अर्थात जापान के लिए यह ‘सरप्लस’ (अर्थात फायदे का) सौदा हैं. लेकिन फिर भी जापान इस सौदे से हटना चाहता हैं, इस से हम चीन के विरोध की भावनाएं समझ सकते हैं.

बिलकुल पूरा नहीं, तो भी व्यापार का एक बड़ा हिस्सा जापान, चीन के साथ नहीं करेगा. जापान में उद्योग लगाना, काफी महंगा पड़ता हैं. इसलिए पचास – साठ प्रतिशत उद्योग, जापान में वापस आ भी गए तो भी बाकी व्यापार का, बाकी उद्योगों का क्या…? ये उद्योग जा सकते हैं – साउथ कोरिया, वियतनाम, कंबोडिया, थायलैंड, बंगला देश, श्रीलंका… पर इनकी क्षमता तो बहुत कम हैं. ये, सारे तुलना में छोटे देश हैं. अर्थात जापान के उद्योगों को भारत में खींच कर लाने का एक बड़ा अवसर हमारे सामने खड़ा हैं.

जापान के प्रधानमंत्री शिंजों आबे और अपने मोदी जी अच्छे मित्र हैं. जापान हमेशा भारत के पीछे ताल ठोंक कर खड़ा रहता आया हैं. ये महामारी प्रारंभ होने के पहले ही जापान ने ‘फूड सैक्टर’ में भारत में विनिवेश करना प्रारंभ कर दिया था. पुणे के पास ‘यीस्ट’ बनाने का एक बड़ा सा प्लांट, जापानी कंपनी लगा रही हैं. यह इसलिए महत्वपूर्ण हैं, क्यूँ की अभी तक आटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स और स्टेशनरी के क्षेत्रों में निवेश करनेवाला जापान, अब भारत को ‘सर्वकष पार्टनर’ के रूप में देख रहा हैं..!

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पिछले एक – डेढ़ वर्ष पहले से, अमरीका और चीन में ‘ट्रेड वॉर’ चल रहा था. वो थोड़ा कम हुआ ऐसा लग रहा था, की इस चीनी वायरस का तांडव चालू हुआ.

अब तो सारा चित्र ही बदल गया हैं. अमरीका में चीन के प्रति जबरदस्त आक्रोश हैं. न्यूयॉर्क के साथ पूरे अमरीका के जो हाल हो रहे हैं, लोगों की जाने जा रही हैं और भरपूर आर्थिक नुकसान हो रहा हैं. . . इन सब के लिए, कोरोना वायरस के कारण चीन ज़िम्मेवार हैं, ऐसा वहां के लोगों का दृढ विश्वास हैं. इसलिए, इस वर्ष होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रम्प और डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार को भी चीन के विरोध में कड़ी भूमिका लेनी ही पड़ेगी.

अमरीका की एक प्रतिष्ठित एजेंसी, Global Manufacturing Consulting Firm हैं Kearney इस नाम की. अभी चार दिन पहले उन्होने 7th Annual Reshoring Report जारी किया हैं. इस रिपोर्ट में अत्यंत स्पष्ट शब्दों में कहा गया हैं की अमरीकी व्यापारियों ने, बड़ी कंपनियों ने अपने उत्पादन चीन में बनाने के लिए दिये, क्यूं की उनको ‘कॉस्ट’ की चिंता थी. चीन में उत्पादन की लागत बहुत कम थी. लेकिन अब उन सारे व्यापारियों को चिंता सता रही हैं, ‘रिस्क’ की !

और इसीलिए यह रिपोर्ट बड़ी मजबूती के साथ कह रही हैं की अमरीकी उद्योग अब चीन के पास नहीं जाएगा. वे सारी कंपनियां विकल्प ढूंढेगी. उनके विकल्प रहेंगे – मेक्सिको, भारत, कंबोडिया आदि.

जो बात अमरीका की, वही यूरोपियन देशों की. पिछले पंद्रह – बीस वर्षों में अनेक यूरोपियन देश, उनका मूलाधार, जो मैनुफेक्चुरिंग था, वही भूल गए थे. चीन सस्ते में सामान बनाकर देता था, इसलिए यूरोप के अनेक उद्योग बंद हो गए थे. इटली का पूरा फ़ैशन जगत, चीन से सामान बनाकर लाता था और उस पर अपना लोगो लगाकर बेचता था. पर अब ऐसा होगा नहीं. साठ प्रतिशत से ज्यादा उद्योग, चीन का विकल्प ढूँढेंगे.

इस चीनी वायरस ने सारा ही उलट पुलट करके रख दिया हैं. और इस अदलाबदली में हमारे सामने लाकर खड़ा किया हैं, एक सुनहरा अवसर…!

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भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में उत्पादन आधारित अर्थव्यवस्था होनी चाहिए थी. किन्तु हमारे देश ने नब्बे के दशक में, आर्थिक सुधारों का जो जोरदार अभियान चलाया, वह हमे सेवा क्षेत्र (Service Industry) में ले गया. उत्पादन आधारित अर्थव्यवस्था हमसे दूर होती चली गई. सेवा क्षेत्र में आर्थिक निर्भरता (dependency) ज्यादा हैं और इसलिए जोखिम (risk) भी ज्यादा हैं.

लेकिन अब एक अच्छा अवसर इस कोरोना महामारी ने हमे दिया हैं. हम अब उत्पादन (manufacturing) आधारित अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ सकते हैं. हम manufacturing hub बन सकते हैं. आज से सात सौ – आठ सौ वर्ष पहले हम विश्व व्यापार में सिरमौर थे. एक तिहाई से भी ज्यादा दुनिया का व्यापार हम करते थे, क्यूं की हमारे बनाएं उत्पादन, सारी दुनिया में जाते थे. उत्पादन (manufacturing) का कौशल हमारे पास था.

उत्पादन के विविध क्षेत्र हमारे सामने खुले हैं. इन चीनी कंपनियों ने अपनी कल्पनाशक्ति से छोटे छोटे उत्पादनों, खिलौनो से लेकर तो बड़ी बड़ी मशीनरी भी बना डाली और दुनिया में बेची. सन १९९५ में ज्यादा चर्चा में नहीं रहने वाला चीन, २००५ आते आते, आर्थिक महाशक्ति बनने की दिशा में चल पड़ा था. चीन अगर यह कर सकता हैं, तो हम क्यूं नहीं..?

घरों में अच्छी अच्छी हस्तकला सामग्री / कलात्मक सामग्री बनाने से लेकर तो विशिष्ट प्रकार के ऊंचे दर्जे के अवजार बनाने तक, हर एक के लिए एक बड़ा अवसर अचानक हमारे सामने आ खड़ा हुआ हैं. इस अवसर को भुनाने के लिए मेहनत की आवश्यकता हैं. परिश्रम की आवश्यकता हैं. अफजल खान को मारने के बाद, शिवाजी महाराज यदि विश्राम करने प्रतापगड पर रुकते, तो भी उनकी प्रशंसा ही होती, की स्वराज्य पर आया हुआ जानलेवा संकट उन्होने टाल दिया. पर वे ‘शिवाजी’ थे. अगले १८ दिन उन्होने और उनके साथी सैनिकों ने, इस अवसर का लाभ लेकर, दिन – रात संघर्ष कर के हिंदवी स्वराज्य का विस्तार दोगुना से ज्यादा कर दिया.

कठोर परिश्रम, नई अत्याधुनिक तकनीकी का उपयोग, अच्छे पैकेजिंग पर ज़ोर, इंटरनेट के माध्यम से विश्व के बाजार में प्रवेश और अत्यंत व्यावसायीक दृष्टिकोण … इनके कारण हम दुनिया के बाजार में एक मजबूत खिलाड़ी साबित हो सकते हैं.

ये सब इतना आसान नहीं हैं. कठिन हैं. बहुत ज्यादा कठिन हैं. प्रत्यक्ष धरातल पर अनेक समस्याएँ हैं. कच्चा माल, पूंजी की कमी, सरकारी नीतियां, स्केलिबिलिटी की कमी. . . आदि अनेक. किन्तु इनका उत्तर ढूंढा जा सकता हैं. यह सब कठिन अवश्य हैं, असंभव नहीं !

सत्तर के दशक के प्रारंभ में साइकल और बैलगाड़ियों पर सेटेलाइट के कल पुर्जे लेकर जाते हुए ‘इसरो’ के कर्मचारी – अधिकारियों के फोटो हमने देखे हैं. तब दुनिया हम पर हसती थी. हमारा मखौल उड़ती थी. उपहास करती थी. ‘ये क्या सेटेलाइट बनाएंगे ?’ ऐसा बोलती थी.

और आज…?

हम अन्तरिक्ष उद्योग (Space Industry) में चौथी महासत्ता हैं. एक लौंचर से, सौ से भी ज्यादा सेटेलाइट अन्तरिक्ष में छोड़ने का कीर्तिमान हमारे नाम हैं. मंगल ग्रह पर पहले ही प्रयास में यान पहुचाने वाले हम दुनिया के एकमात्र देश हैं.

हम कर सकते हैं.

हमारे परमाणु (एटमी) कार्यक्रम में जब अड़चने आयी, तो उसका हल ढूँढने हम किसी विकसित देश के पास नहीं गए. हमने हमारे संसाधनों से सुलझा ली वे सारी समस्याएं. आज हम परमाणु शक्ति से सुसज्जित राष्ट्र हैं, तो अपने दम पर…!

हां. हम कर सकते हैं.

सारा विश्व अत्यंत आदर और सम्मान के साथ आज हमारी ओर देख रहा हैं. भारतीय जीवन मूल्यों की परिचय, दुनिया को हो रहा हैं. इस चीनी महामारी ने हमे ज्यादा नुकसान नहीं पहुचाया, इसका कारण हमारा खानपान, हमारी जीवनशैली, हमारे जीवनमूल्य हैं, ऐसा दुनिया कह रही हैं. इस आपत्ति में भी हमने ईरान सहित दूसरे अनेक देशों की जिस प्रकार से सहायता की, उसकी भी वैश्विक मंच पर प्रशंसा हो रही हैं.

नियति संकेत दे रही हैं. बहुत अच्छी बातें हो रही हैं. समाज सक्रिय हैं. केंद्र में संवेदनशील सरकार हैं. प्रधानमंत्री मोदी जी जैसा मजबूत नेतृत्व हमे मिला हैं. एक सौ तीस करोड़ का यह राष्ट्रपुरुष जाग रहा हैं.

और इस चीनी वायरस के महामारी ने एक चमचमाता अवसर हमारे सामने लाकर रख दिया हैं. यदि इस अवसर को हमने खो दिया, तो हमारे जैसे कर्मदरिद्री हम ही कहलाएंगे और इसके लिए आनेवाली पीढ़ियाँ हमे माफ नहीं करेंगी, यह निश्चित हैं…!

— प्रशांत पोळ