मौन रहो
मानवता की नयी रीत आ गयी ,
आदमी भरी भीड़ आइसोलेट है.,
जब खुद को ही नहीं जानता ,
तो दूसरों को क्या पहचानता ,
जात-पात धरम का चोला पहन ,
धन और पद के मद में डूबा है ,
ईमान का अवतार , पीर बन ,
अन्ध भक्तों को हलाल करता है ,
अपनी चिन्ता वह पूरी करता है ,
औरों को मौत के कहर में झोंक ,
कानून के अनुसार वह भोंकता है ,
करता कुछ है , कहता कुछ और है
दिखाता कुछ और , होता कुछ और ,
कोरोना के कहर में राज के सब लोग ,
अपनी अपनी सियासत कर रहे है ,
जनता ने चुना , भुगतेगी जनता ही ,
कोई इस्लाम की बात करता है तो
कोई लोकडाउन पालन की , पर
खूद कर्ता-धर्ता , कर्णधार , मठाधीश ,
उडाते है मखौल सदा संविधान का ,
कानून तो आम आदमी के लिए है ,
बाकी सब तो विशेषाधिकार लिए है ,
मौन रहो , विरोध न करे ,, वाग्वर—
विनोद कुमार जैन वाग्वर सागवाड़ा