क्षमता
“फिर वही पुराना राग छेड़ दिया तुमने, मैंने मेरी पूरी जमा पूंजी लगा दी है तुम्हारी पढ़ाई व कोचिंग में — मैं अब कुछ नहीं सुनना चाहता। अब भी वही घिसे पिटे बहाने हैं न तुम्हारे।”
“विज्ञान पढ़ते हुए सिर दुखता है, मुझे साहित्य में रुचि है —ऐसे बहाने तुमने पिछले साल से बहुत बार कर लिए हैं। मैंने बचपन से ही सबको बोल रखा है कि देखना एक दिन मेरा बेटा डॉक्टर बनेगा।”
मैं दनदनाता हुआ बाहर बैठक में आया तो सामने नंदू खड़ा था, उसके मुंह पर हवाइयां उड़ रही थी, बोला, “साहब इस बार पूरी फसल,अधिक मात्रा में रासायनिक खाद डालने व मिट्टी के अनुकूल फसल न बोई जाने से बर्बाद हो चुकी है। मालिक,फसल तो चौपट हुई जो हुई, ऊपर से जमीन भी अब कहीं की न रही। कम से कम ५ साल इस बार अनाज उपजने से रहा।”
ज़्यादा फसल उगाने के लालच ने आज मुझे कहीं का न छोड़ा ! अरे! मैं मेहुल के साथ भी तो कुछ वैसा ही कर रहा हूँ, उसकी क्षमता व कौशल से ज्यादा वह भी कैसे पढ़ पाएगा?”
मुझे इतनी तेज आवाज़ में उससे बात नहीं करनी चाहिए थी।अब वह जहां कहेगा वहीं पर एडमिशन करवा दूँगा। अचानक उसके कमरे से उठती लपटों ने एक अनजानी आशंका से भर दिया मुझे। किसी तरह कमरे के दरवाज़े को धक्का देकर तोड़ा गया व मैं उसको बचाने के लिए भुजंग की तरह उससे लिपट गया ।
जब दो दिन बाद मुझे होश आया तो मेरे दोनों हाथों को, संक्रमण फैलने से बचाने हेतू काटा जा चुका था। मेहुल जा चुका था, आज मेरे पास प्रायश्चित के आँसूओं के सिवाय कुछ नहीं था। मैं माफ़ी माँगना चाहता हूँ मेरे बेटे से, लेकिन अब तो केवल यह पांव ही हैं जो उसकी समाधि पर मेरे माफ़ी के हस्ताक्षर उकेर सकते हैं।
— कुसुम पारीक