कविता

दूरियाँ

क्यों बतलाओ ना…
दूरियाँ पास लाती हैं ना..
गुम हुए प्रेम को
छिपे हुए ममत्व को
खोए हुए बचपन को
ठहरे हुए अहसासों को
अनमोल रिश्तों के मोल को
प्रकृति की अनसुनी आवाजों को
उन सारी संवेदनाओं को..
जिन्हें भुला रखा था
उस मायावी संसार के
चंद सिक्कों की खनकती आवाज में..
क्यों बतलाओ ना…
हाँ.. दूरियाँ पास लाती हैं
दिखलाती है छवि
अहंकार के अंत की..
स्वीकारती है हकीकत
सजीव और निर्जीव की सीमा की..
और बतलाती है अहमियत
परम सत्ता के अस्तित्व की…
हाँ, सच में दूरियाँ पास लाती हैं !!

— वर्तिका 

डॉ. वर्तिका जैन

सहायक आचार्य, वनस्पति शास्त्र, राजकीय मीरा कन्या महाविद्यालय, उदयपुर-313001, राजस्थान