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बेजुबान

बेजुबान

 

 

‘मां, क्या हमारे जुबान नहीं है?’ बछिया ने गाय मां से पूछा। ‘कौन कहता है?’ गाय मां ने कहा। ‘आज जब मैं तुम्हारा दूध पी रही थी तो हमारे अन्नदाता ने मुझे खींच लिया और दूध बर्तन में भरने लगा। अभी तो मेरा पेट भी नहीं भरा था। मैंने बहुत कोशिश की तुम्हारे पास दुबारा आने की पर मुझे नहीं आने दिया गया। मैं बहुत रोई। पर हमारे अन्नदाता ने एक न सुनी। फिर पास में से एक मां और उसकी बेटी गुजर रहे थे तो मां ने अपनी बेटी से कहा कि देखो यह आदमी बेजुबान पशु पर कितनी सख्ती कर रहा है। तो क्या हमारे जुबान नहीं है, हम बेजुबान हैं?’ बछिया ने बताया।

‘नहीं, नहीं, हमारी जुबान तो बहुत लम्बी है, देखो निकालो तुम, ऐसे जैसे मैं निकाल रही हूं’ गाय मां ने कहा तो बछिया ने जुबान बाहर निकाली और दोनों को हंसी आ गई। ‘सुनो बेटी, तुम तो कुछ ही दिन पहले दुनिया में आई हो, नई नई बातें पता चलेंगी। ये जो इन्सान है न, ये समझता है कि हम बेजुबान हैं। उसका मतलब है कि हम बोल नहीं सकते। पर ये उसकी गलतफहमी है…’ गाय मां अभी समझा ही रही थी कि उसका मित्र कौआ आ पहुंचा ‘आज तो बहुत बतिया रही हो, बिटिया से।’ ‘हां, बिटिया पूछ रही थी कि क्या हम बेजुबान हैं तो मैं उसे समझाने का यत्न रही थी’ गाय मां ने कहा ‘और तुम बताओ तुम्हारा कैसे आना हुआ?’ ‘मैं तो इधर ही आया था सामने वाले मकान की मुंडेर पर। वहां पर रहने वाले इन्सान अपने घर की छत पर हमारे लिए पानी का बर्तन और कुछ खाने-पीने का सामान दिया करते हैं, वही लेने गया था अपने साथियों के साथ। वहां मेरे और मित्र कबूतर, चिड़िया, तोता, मैना, गिलहरी भी आते हैं। खाना-पानी भी मिल जाता है और आपस में बातें भी हो जाती हैं।’ कौए ने जवाब दिया।

‘तुम आ जाते हो, अच्छा लगता है। तुम भी हमारी बहुत मदद करते हो’ गाय मां ने कहा। ‘हमें एक दूसरे की जहां तक हो सके मदद करनी चाहिए’ कौए ने कहा। इतनी देर में गाय का मालिक आ गया। ‘तुम जाओ, हमारा मालिक आ गया है, फिर आना’ गाय मां ने कहा तो कौआ उड़ गया। ‘कितनी बातें करते हैं कौए अंकल और इन्सान कहता है हमारे जुबान नहीं है’ बछिया ने कहा। मालिक ने गाय मां और बछिया को खोला और घर के अन्दर बनी चारे की जगह पर ले गया। ‘चलो, अब खाना खा लें’ गाय मां ने बछिया से कहा और दोनों चारा चरने लग गए। पास में ही मुर्गे-मुर्गियों का दड़बा था ‘गाय मां, प्रणाम, प्यारी बछिया कैसी हो’ मुर्गों का सरदार बोला। ‘हम बहुत अच्छे हैं और तुम सब कैसे हो’ गाय मां ने पूछा। ‘हम सब ठीक ही हैं, हमारी दुनिया तो इसी पिंजड़ों में ही सिमटी हुई है। ये आपस में बातें ही कर रहे थे कि मालिक आया और उसने पिंजड़े में इधर-उधर देखा। वहां उसे दो अण्डे नजर आए जो उसने उठा लिए। मुर्गी चिल्लाई, उसने बहुत प्रयत्न किया कि मालिक उसके अजन्मे बच्चों को न ले जाए पर उसकी आवाज नहीं सुनी गई।’ ‘हम कर भी क्या सकते हैं?’ गाय मां और मुर्गों का सरदार बोला।

रात हो गई थी। गाय मां और मुर्गों का परिवार उदासी में जागते जागते न जाने कब सो गया। इतनी बेबसी के बाद भी ‘कुकडू कूं’ नियमानुसार मुर्गे के सरदार ने बांग देकर सूर्य को निकलने का निमंत्रण दिया। उसकी बांग सुनकर कुछ इन्सान भी उठ बैठे। गाय मां ने बछिया पर स्नेह से जुबान फेरी। बछिया उछलती-कूदती गाय मां के साथ खेलने लगी। आसपास के मंदिरों से घंटियों की आवाजें आने लगीं, मस्जिदों से आजान सुनाई दी, गुरुद्वारों से शबद कीर्तन गूंजने लगे मानो सभी उगने वाले सूरज का अभिनन्दन करने के लिए तैयार हों। आकाश में छायी कालिमा धीमे-धीमे छटने लगी थी ऐसे जैसे किसी दर्पण पर लगा पर्दा उठने लगा हो। सूर्य की सुबह-सुबह की किरणें यही दर्पण हटाने का कार्य करती हैं और धीरे-धीरे जग में उजियारा होने लगता है। हर्षातिरेक में पंछी कलरव करने लगते हैं। मन्दिर-मस्जिद-गुरुद्वारों में हो सकता है कभी देर-सवेर हो जाये पर पंछी कभी देर नहीं करते। वैसे भी वे प्रकृति के आंचल में रहते हैं। हर पंछी की अपनी बोली, अपनी भाषा। पंछी एक दूसरे की बोली समझते हैं। इधर निद्रादेवी स्वयं निद्रा के आगोश में चली जाती है और उधर निद्रा से जगने के बाद सूर्यदेव खिल उठते हैं। हरे-भरे पेड़ों पर परिन्दे इधर से उधर उड़-उड़ आते जाते हैं। उनके घोंसलों में नन्हे-मुन्हे पंख फड़फड़ाते हैं ‘कभी तो हम भी भरेंगे ऐसी उड़ान।’ पशु-पक्षी प्रेमी अपने साथ लाया दाना-खाना खिलाते हैं। रोजाना आने वाले इन प्रेमियों को दूर से ही पहचान लेते हैं ये और उनके पास चले जाते हैं बेखौफ होकर।

‘मां, ये जो इंसान है न बहुत चालाक है’ बछिया ने कहा। ‘कैसे?’ गाय मां ने पूछा। ‘देखो न, हम से फायदा मिला तो हमें बांध कर रख लिया, मुर्गे-मुर्गियों से फायदा हुआ तो उन्हें पिंजड़े में कैद कर लिया। पर ये चिड़ियों, तोतों, कबूतरों, चील आदि के साथ ऐसा नहीं करता क्योंकि इनसे उन्हें कोई फायदा नहीं होता’ बछिया ने कहा। ‘वाह बिटिया, दुनिया में आये कुछ ही महीने हुए हैं और इतनी बातें करने लग गई है’ गाय मां ने कहा ‘पर तुझे अभी मालूम नहीं, इन्सान चिड़ियों को पिंजड़ों में बंद करके रखता है अपना और अपने बच्चों का मन बहलाने के लिए। कबूतरों को बंद करके रखता है उनकी उड़ान देखकर अपना मन बहलाने के लिए। ऐसा ही तोतों के साथ और अन्य खूबसूरत पक्षियों के साथ करता है।’ ‘जब उन्हें पिंजड़े में बंद कर लेता होगा तो घर पर इंतज़ार कर रहे उसके परिवार, उसके बच्चों पर क्या बीतती होगी’ बछिया उदास होकर बोली। ‘वो बहुत दुःखी होते हैं पर इन्सान को उनके दुःख से कोई मतलब नहीं होता, उसे तो अपना व अपने बच्चों का मन बहलाना होता है। अगर होता तो वो कभी ऐसा नहीं करता।’ गाय मां ने कहा। ‘यह तो बहुत गलत बात है। अगर कोई किसी इन्सान के बच्चे को ऐसे ही बंद कर ले तो उस पर क्या गुजरेगी’ बछिया ने कहा। ‘तू छोड़ इन बातों को, जितना सोचेगी उतना परेशान होगी। और हमारे सोचने से इन्सान थोड़े ही बदल जायेगा’ गाय मां ने कहा। ‘अच्छी बात है’ कहते हुए बछिया अपने में मस्त हो गई।

थोड़ी देर में उसे पंछियों का चीत्कार रूपी कलरव सुनाई दिया। ‘मां, क्या हो रहा है, पंछी इतने परेशान क्यों हो रहे हैं’ बछिया ने पूछा। ‘देख कर बताती हूं’ कहते हुए गाय मां ने इधर-उधर नज़र दौड़ाई तो माजरा समझ में आ गया। ‘कुछ पता चला मां’ बछिया ने कहा। ‘हां बेटी, कुछ नासमझ लड़के पेड़ों पर बैठे पक्षियों पर गुलेल से वार कर उन्हें घायल कर रहे हैं और इसमें कुछ पक्षी तो मर भी सकते हैं’ गाय मां ने कहा। ‘ओह, यह तो बहुत गलत है, क्रूरतापूर्ण कार्य है, तुम अपने मित्र कौवे से कहो उन्हें सबक सिखाए’ बछिया ने कहा। ‘हां, यह ठीक है, ऐसा ही करती हूं’ कहते हुए गाय मां ने मित्र कौए को आवाज़ दी ‘मित्र कौए, जल्दी से इधर आना।’ ‘अभी आ रहा हूं, ज़रा पत्थरों से खुद को बचा लूं’ कौए ने कहा और कुछ ही देर में कांव-कांव करता आ गया। ‘कहो, क्या बात है गाय मां’ कौए ने कहा। ‘ये नासमझ लड़केे पंछियों को गुलेल से पत्थर चलाकर मार रहे हैं, जल्दी से इन्हें सबक सिखाओ’ गाय मां ने कहा। ‘अब देखो मैं क्या करता हूं’ कहता हुआ कौआ उड़ते हुए जोर-जोर से कांव-कांव करने लगा। देखते ही देखते बहुत सारे कौए इकट्ठे हो गये और गुलेल चलाने वाले नासमझ लड़़कों पर चोंच से आक्रमण करने लगे। अपने ऊपर हमला होते देख वे इधर-उधर भागने लगे। इस हमले में अन्य पंछी भी शामिल हो गए और उन्होंने भी इन उद्दंड लड़कों पर चोंच से आक्रमण कर अपने ऊपर हुए हमले का बदला लिया। लड़के घबरा कर इधर-उधर भागते हुए अपने घर लौट गए।

‘हाय-हाय, देखो तो मेरे बच्चे का क्या हाल कर दिया है इन नामुराद पंछियों ने, क्या बिगाड़ा था मेरे बच्चे ने’ उस बच्चे की मां ने कहा। ‘अम्मी, अम्मी, भइया पंछियों पर गुलेल चला रहे थे तो उन्होंने इन पर चोंचें मारीं’ छोटे भाई ने कहा। ‘अरे बेटा, यह क्या कर रहे थे तुम, गलत काम है, ऐसा कभी भी नहीं करना चाहिए इन बेजुबान पंछियों के साथ’ मां ने कहा। ‘कहो गाय मां, कैसी रही’ कौए ने लौट कर कहा। ‘बहुत अच्छा किया, उन्हें सबक सिखाना जरूरी था’ गाय मां ने कहा। ‘पर …’ कौआ कुछ उदास नजर आया। ‘एक बच्चे की मां ने हमें बेजुबान कहा, मुझे तकलीफ हो रही है’ कौए ने कहा। ‘कोई बात नहीं मित्र, हमें भी अक्सर इन्सान बेजुबान कह देता है, अब तो आदत-सी हो गई है‘ गाय मां ने कहा। ‘अक्सर जब इन्सान का कोई छोटा बच्चा बोलता नहीं है तो उसे हमारी झूठन खिलाई जाती है, यह मानते हुए कि हमारा झूठा खायेगा तो बोलना शुरू कर देगा। बिल्कुल कृतघ्न है इन्सान। नासमझ है।’ कौए ने फिर कहा।

गाय मां ने कहा ‘तुम कहते तो बिल्कुल ठीक हो, फिर एक काम और करो।’ ‘कहिए’ कौए ने कहा। ‘आज अर्द्धरात्रि को तुम हमारे सभी साथियों को एक जगह इकट्ठा कर लो, कुछ विशेष चर्चा करेंगे’ गाय मां ने कहा। ‘यह कौन-सा मुश्किल काम है’ कहते हुए कौए ने उड़ान भरी और हर किसी को अर्द्धरात्रिकालीन मीटिंग में आने का न्यौता देता गया। कुछ पंछियों ने कहा ‘अर्द्धरात्रिकाल को हम अपने नीड़ में रहते हैं, बाहर नहीं निकलते हैं तो हम नहीं आ पाएंगे।’ ‘मैं मानता हूं कि हम पंछी अर्द्धरात्रिकाल को अपने नीड़ों से बाहर नहीं निकलते, पर सायंकाल हम इकट्ठे नहीं हो सकते, उस समय इन्सान सक्रिय होता है और हमारे लिए खतरा बन सकता है। इसीलिए अर्द्धरात्रिकाल का समय चुना गया है। अपने नन्हे-मुन्हों को साथ नहीं लाना क्योंकि वे गहरी निद्रा में सोए होंगे और गाय मां ने मीटिंग बुलाई है तो जरूरी होगी’ कौए ने समझाया। ‘गाय मां ने आह्वान किया है तो हम जरूर आयेंगे’ पंछियों ने आश्वस्त किया। इसी प्रकार कौआ आसपास के पशुओं को भी न्यौता देने गया। वहां भी सभी ने आलस दिखाया पर गाय मां का नाम सुनते ही हामी भर दी। मीटिंग के बारे में जानकर कुत्ते बहुत उत्साहित थे ‘हम रात्रिकाल के प्रहरी हैं। हम सुनिश्चित करेंगे कि मीटिंग में कोई आन्तरिक या बाहरी व्यवधान न हो।’ सभी से आश्वस्त होने के बाद कौए ने गाय मां को सूचित किया और फिर अपने नीड़ पर चला गया। सभी के मन में उत्सुकता जन्म ले चुकी थी कि रात्रिकाल को क्या होगा। सांझ हुई, सूरज दादा भी अपने नीड़ की ओर चले हालांकि आज पशु-पक्षियों का व्यवहार उन्हें अलग ही दिख रहा था। पक्षियों के कलरव शुरू हो चुके थे। रात्रिकाल के प्रहरी कुत्ते भी अति उत्साहित थे और इधर-उधर घूम कर सुरक्षा व्यवस्था का जायजा ले रहे थे।

रात्रि गहराने लगी थी। पेड़ों पर बने आशियानों में नीरवता छाई हुई थी। रोज की भांति पंछी भी निंदियाने लगे थे। जिम्मेदार कौए की आंखों में नींद नहीं थी। चांद और सितारे आकाश में खेल रहे थे। कुत्तों ने रात्रिकालीन उपस्थिति बतानी आरंभ कर दीे थे। अर्द्धरात्रि होने में चंद मिनट ही शेष रह गए थे। कुत्तों की तरफ से कौआ आश्वस्त था। वह आसपास के हर पेड़ पर बने घोंसलों में चुपचाप जाता गया और पंछियों के नन्हे-मुन्हों की नींद में बिना विघ्न डाले उनके मां-बाप को सचेत करता गया। कुत्तों ने ज्यादा शोर किया था जिससे अन्य पशु सोएं नहीं। खैर, अर्द्धरात्रिकाल होते ही पशु-पक्षियों का जमावड़ा एकत्र हो गया। गाय मां ने धीरे से कौए को पुकारा। ‘कहिए’ कौए ने कहा। ‘मेरे गले की घंटी को ज़रा अपनी चोंच की मदद से उलझा दो ताकि बात करते समय ये बजे नहीं’ गाय मां ने कहा। कौए ने वैसा ही किया। सोती हुई बछिया के पास धीरे से निकलती हुई गाय मां जमावड़े में जा पहुंची। सभी ने गाय मां को प्रणाम किया।

प्रणाम का उत्तर अभिवादन से देती हुई गाय मां ने कहना आरंभ किया ‘आप सभी यहां आए उसके लिए हार्दिक धन्यवाद। आप सभी को जो तकलीफ सहनी पड़ी उसके लिए क्षमा चाहती हूं…..’ अभी गाय मां संबोधन कर ही रही थी कि बछिया भी वहां आ पहुंची। ‘तुम कैसे आ गई, चलो आ ही गई हो तो चुपचाप बैठो और सुनते जाओ ‘गाय मां ने कहना जारी रखा ’हमारी आज की मीटिंग का एजेण्डा है ‘बेजुबान’।’ ‘बेजुबान!!!’ यह सुनकर सभी में कानाफूसी होने लगी। ‘कृपया शांत रहिए और सुनिए’ गाय मां ने बोलना आरंभ किया ’आज सुबह मेरी बेटी ने मुझे बताया कि हमें बेजुबान कहकर बुलाया जाता है। हमारी नयी पीढ़ी में ऐसा भाव पैदा होना हम सभी की आंखें खोलने वाला है, सामाजिक चेतना लाने वाला है। मैं इस विषय पर आपके विचार जानना चाहूंगी – पहले चिड़िया तुम बोलो।’

चिड़-चिड़-चिड़ की प्यारी-सी आवाज करती हुई बोली ‘हम बेजुबान नहीं हैं। हमारा बोलना, हमारा कलरव करना इन्सान को बहुत भाता है। सुबह-सुबह जब हम कलरव करते हुए पेड़ों पर फुदकते हुए उड़ती हैं तो इन्सान हमें एकटक देखते ही रहता है। अतः हम बेजुबान नहीं हैं।’ संक्षिप्त में अपनी बात कर चिड़िया रानी बैठ गई। उधर आकाश में चंदा और तारे भी इस मीटिंग को देख रहे थे और मामले की गंभीरता को समझते हुए उन्होंने अपना सारा प्रकाश एक गोलदायरे के रूप में इस सभा के चारों ओर केंद्रित कर दिया। पशु-पक्षी चांद तारों की शीतल रोशनी में जैसे नहा बैठे हों। उन्होंने ऊपर ऐसे देखा मानो धन्यवाद कर रहे हों। ‘कोयल, तुम कहो’ गाय मां ने कहा। अपनी प्यारी सी कुहू करती हुई कोयल ने कहा ‘इन्सान का यह सोचना कि हम बेजुबान हैं सरासर गलत है, बेबुनियाद है। इन्सान अपनी सम्पूर्ण जाति में हमारी मधुर वाणी का गुणगान करता रहता है अतः हम बेजुबान बिल्कुल नहीं हैं।’ कहकर कोयल ने बात समाप्त की।

‘मैना, तुम बोलो’ गाय मां ने कहा। जब वह बोलने उठी तो मियां-मिट्ठू ने हर्षध्वनि की। मैना लजा गई। ‘मियां मिट्ठू, यह समय गम्भीर विषय पर चर्चा का है। अपनी प्रेम कहानी बाद में दोहराना। ‘सभी आदरणीय उपस्थित बंधुओ, इन्सान हमारी बोली के उदाहरण देता रहता है तो हम बेजुबान कैसे हुए। इन्सान की सोच गलत है’ कहकर लजाती मैना बैठ गई। अन्य छोटे-मोटे पक्षियों ने अपनी बात कही जिससे सिद्ध हो रहा था कि वे बेजुबान नहीं हैं। चील को कहीं जाना था अतः वह नहीं आ पाई थी। उल्लू भी एक पार्टी में गया था सो न आ सका। अब गाय मां ने कौए से निवेदन किया ‘मित्र कौए, आज तुमने जिस प्रकार से जिम्मेदारी निभाई है मैं हृदय से आभारी हूं। अब तुम कुछ कहो।’ ‘धन्यवाद, गाय मां’ कौए ने कहना आरंभ किया ‘आप सभी ने अपने विचार रखे जो बार-बार यह सिद्ध कर रहे हैं कि हम बेजुबान नहीं हैं। जब कोई इन्सान बहुत ज्यादा बोलता है तो उसकी तुलना हम से यह कह कर की जाती है कि ‘देखो कितना कांव-कांव करता है’, मैंने आज गाय मां को सुबह भी बताया था कि जब कोई इन्सानी बच्चा बोलने की उम्र में नहीं बोलता तो उसे हमारा झूठा दही खिलाया जाता है इस आशा से कि उस बेजुबान इन्सानी बच्चे में जुबान आ जायेगी। तो आप ही बताएं कि क्या हम बेजुबान हैं, इस बात से गाय मां की बिटिया बहुत आहत हुई थी। हमारी कांव-कांव को इन्सान शोर समझता है। ठीक वैसे जैसे किसी अनपढ़ इंसान के लिए कुछ भी लिखा हुआ जब समझ नहीं आता तो उसे काला अक्षर भैंस बराबर कहा जाता है। इन्सान हमें क्या बेजुबान कहेगा, हम तो वो हैं जो इन्सानों को जुबान देते हैं, हम वो हैं जो पंख फैलाकर उड़ जाते हैं, और इन्सान वो है जो हमें उड़ता देख फड़फड़ा कर रह जाता है। हमें नीचा दिखाने के लिए इन्सान के पास कोई रास्ता नहीं दिखा तो हमें बेजुबान कहना शुरू कर दिया’ कहते-कहते कौए का ब्लड-प्रैशर हाई हो गया था। यह देख गाय मां ने उसे बैठा दिया ‘धन्यवाद मित्र कौए।’

मीटिंग को ज्यादा लम्बा न करती हुई मैं अंत में रात्रिकालीन के प्रहरी कुत्तों से कहूंगी कि इस विषय में अपने विचार रखें। ‘मुझे तो कुछ कहने का अवसर नहीं दिया गया’ मियां मिट्ठू बोले। ‘ओहो, तुम कहां छुप गए थे, क्या मैना के साथ इश्क लड़ाने लग गए थे, चलो जल्दी से बोलो’ गाय मां ने हंसते हुए कहा। ‘हम तो वो हैं जो अपनी जुबां के साथ-साथ इन्सानी जुबां भी बोल लेते हैं, मगर इन्सान जब हमारी नकल करता है तो रिरियाता-सा लगता है – हमें पिंजड़ों में भी कैद कर लिया जाता है सिर्फ हमारी जुबान सुनने के लिए – तो हम बेजुबां कैसे हुए’ कहते-कहते शायर तोते की आंखों में आंसू आ गए। फिर कुत्तों का सरदार बोला ‘इन्सान जानता है कि हम बहुत ही स्वामिभक्त हैं। हम उसकी हर बात को समझ लेते हैं पर वह हमारी अधिकतर भाषा नहीं समझ पाता। जब हमें कोई तकलीफ होती है तो हम उसे बताना चाहते हैं पर वह नहीं समझता और अन्त में हमें दुभाषिये के पास ले जाता है। दुभाषिये से मेरा मतलब है हमारा इलाज करने वाले डाक्टर के पास जो हमारी भाषा समझता है। इससे यह तो सिद्ध हो ही जाता है कि हमारी जुबान है, हम बेजुबान नहीं हैं।’

क्षणभर के लिए सभा में सन्नाटा छा गया जिसे तोड़ते हुए गाय मां ने कहा ‘जो इन्सान हमें बेजुबान समझता है, हमारे राजा शेर कर दहाड़ के आगे उसकी घिग्घी बंध जाती है, जान निकल जाती है और वो हमें बेजुबान कहता है। इन्सान जिसकी प्रजातियां सम्पूर्ण विश्व में फैली हैं उसकी अनेक भाषाएं हैं। पर एक जगह रहने वाला इन्सान दूसरी जगह रहने वाले इन्सान की भाषा नहीं समझ पाता तो क्या यहां उसे बेजुबान कहा जाए। और हम तो इस मामले में सर्वश्रेष्ठ हैं। सम्पूर्ण विश्व में हमारी विभिन्न प्रजातियां एक-सी भाषा बोलती हैं। विदेशी भाषा का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। पर इन्सान यह नहीं समझता कि हम उसे भगवान की रचना मानकर प्रेम करते हैं उस पर अपना स्नेह लुटाते हैं। कल सुबह हमें शक्ति-प्रदर्शन करना होगा। सभी अपने-अपने यहां से पूरे उच्च स्वर में अपनी-अपनी बोली बोलेंगे और तब तक बोलते रहेंगे जब तक इन्सान जाग न जाए और इसी के साथ मैं आज की मीटिंग बर्खास्त करती हूं’ गाय मां ने कहा। ‘हमें आने में देरी हो गई, हमें माफ करो’ वानरों ने कहा जो भागते-भागते आए थे। ‘कोई बात नहीं, तुमने अपनी यही आदत इन्सानों को भी उपहार में दे दी है और वह भी समय का पाबन्द नहीं रहता। अपवाद हर जगह होते हैं। तुम्हें मित्र कौआ सारी बातें बता देगा और तुम्हें भी पूरा सहयोग करना है’ गाय मां ने कहा। ‘ठीक है गाय मां’ कहते हुए वानर भी चले गये।

अगले दिन सुबह-सुबह अत्यधिक शोर सुनकर सभी लोग अपने घरों से बाहर आ गए। यह जन्तु जगत की पहली जीत थी। ‘अरे भई, क्या हो गया है, इतना शोर कैसे?’ लोग अपने कानों पर हाथ रखे थे। यह जन्तु जगत की दूसरी जीत थी। ‘अरे ये तो बिल्कुल भी बेजुबान नहीं हैं, देखो इनकी कितनी लम्बी जुबान है’ एक बोला। यह जन्तु जगत की तीसरी और निर्णायक जीत थी। ‘यह हमारी जबर्दस्त जीत है, इन्सान ने स्वयं स्वीकार कर लिया कि हम बेजुबान नहीं हैं। इन्सान को चाहिए भविष्य में इस तरह की चुनौती देने की घृष्टता न करे और हम से ठीक से पेश आए, आप सभी का इस आन्दोलन को सफल बनाने के लिए हार्दिक धन्यवाद। सामाजिक चेतना लाने के लिए मैं अपनी बेटी का धन्यवाद भी करती हूं, आप सभी अपने-अपने काम पर जायें’ गाय मां का इशारा सुनते ही सभी हर्षित हुए और इन्सान अपने ही सवालों में उलझ गया था।

(चित्र आभार: गूगल जी से जुड़े स्रोत)

सुदर्शन खन्ना

वर्ष 1956 के जून माह में इन्दौर; मध्य प्रदेश में मेरा जन्म हुआ । पाकिस्तान से विस्थापित मेरे स्वर्गवासी पिता श्री कृष्ण कुमार जी खन्ना सरकारी सेवा में कार्यरत थे । मेरी माँ श्रीमती राज रानी खन्ना आज लगभग 82 वर्ष की हैं । मेरे जन्म के बाद पिताजी ने सेवा निवृत्ति लेकर अपने अनुभव पर आधरित निर्णय लेकर ‘मुद्र कला मन्दिर’ संस्थान की स्थापना की जहाँ विद्यार्थियों को हिन्दी-अंग्रेज़ी में टंकण व शाॅर्टहॅण्ड की कला सिखाई जाने लगी । 1962 में दिल्ली स्थानांतरित होने पर मैंने दिल्ली विश्वविद्यालय से वाणिज्य स्नातक की उपाधि प्राप्त की तथा पिताजी के साथ कार्य में जुड़ गया । कार्य की प्रकृति के कारण अनगिनत विद्वतजनों के सान्निध्य में बहुत कुछ सीखने को मिला । पिताजी ने कार्य में पारंगत होने के लिए कड़ाई से सिखाया जिसके लिए मैं आज भी नत-मस्तक हूँ । विद्वानों की पिताजी के साथ चर्चा होने से वैसी ही विचारधारा बनी । नवभारत टाइम्स में अनेक प्रबुद्धजनों के ब्लाॅग्स पढ़ता हूँ जिनसे प्रेरित होकर मैंने भी ‘सुदर्शन नवयुग’ नामक ब्लाॅग आरंभ कर कुछ लिखने का विचार बनाया है । आशा करता हूँ मेरे सीमित शैक्षिक ज्ञान से अभिप्रेरित रचनाएँ 'जय विजय 'के सम्माननीय लेखकों व पाठकों को पसन्द आयेंगी । Mobile No.9811332632 (Delhi) Email: [email protected]