कोरोना को हराना है
जला सको असीम आस से भरा सुदीप तो,
घटे विषाद-यामिनी प्रभात भी समीप हो।
सुनो सपूत!क्या कहे वसुंधरा कराहती,
रहो सदैव प्रेम-सिक्त बुद्धि-युक्त चाहती।।
मनुष्य जीव-जन्तु आदि ना कहीं विलीन हों,
न वृक्ष पुष्प वाटिका सुगन्ध से विहीन हों।
न आपदा पड़े कभी मिटे अपार वेदना,
सुसुप्त प्राण में भरे सुधामयी सुचेतना।।
सुदीप्त लालिमा दिखी अतीव जो प्रकाश की,
विदीर्ण हो रही अकूत कालिमा विनाश की।
मिटे धरा न व्योम ये प्रयास हो रहा यहाँ,
अमर्ष में भरे विदग्ध जानते भला कहाँ?
अनर्थ के अमीत के अनेक रूप डोलते,
विरोध क्रोध दर्प में अधीर तीव्र बोलते।
प्रलाप का प्रभाव क्या विचार लो पड़ा कभी,
उदात्त भाव ही हरें विकार प्राण के सभी।।
प्रतीत हो रहा यही नरेन्द्र आज राम हैं,
विवेक से किये सदा प्रजा-हितार्थ काम हैं।
विरक्त भाव से रहे अनूप भोग त्यागते,
विपत्ति से बचाव हेतु रात-रात जागते।।
विलास के उपाय भी प्रदान ईश ने किये,
विनीत शुद्ध बुद्ध शांत साधु भाव भी दिये।
सुनीति सत्यता सुयोग की प्रभूत सम्पदा,
दया-क्षमा महानता सँवारती रही सदा।।
प्रणाम है विराट रूप धैर्य को प्रणाम है,
मिला प्रभो प्रसाद से कहाँ उन्हें विराम है?
कृतज्ञ विश्व हो सदा अगाध नेह प्राप्त हो,
दसों दिशा शुभा-प्रभा अथाह मोद व्याप्त हो।।
— शुभा शुक्ला मिश्रा ‘अधर’