अपर्यय
आज किसी की जगह ली है तुमने
कल तुम्हारी जगह कोई और लेगा
पेड़ शोक नहीं मानता है पतझड़ का
बल्कि खिला लेता है कोंपलों को
और झड़े हुए सूखे पत्ते बटोर कर
कोई ना कोई माली जला ही देता है
राख मिट्टी, हवा, पानी में मिल जाती है
जिसके कहीं निशान नहीं रह जाते
जो पत्ते जल नहीं पाते हैं, रह जाते हैं
मसल देता है उन्हें भी कोई ना कोई
इस तरह वह भी मिट्टी में ही मिल जाते हैं
कल वह हंस रहे थे किसी पर
आज उन पर कोई और हंस रहा है
कल तुमने ली थी जगह किसी की
आज तुम्हारी जगह कोई और ले रहा है…
– शिप्रा खरे (गोला- खीरी)