” सपनीली सी राह है ” !!
हाथों में जब हाथ लिया तो ,
मन में जगा उछाह है !
पल पल हुए मधुरतम ऐसे ,
सपनीली सी राह है !!
ठहरे ठहरे दिन लगते हैं ,
रतियाँ लगे हैं ठहरी !
तुम जब आये अंक में अपने ,
दुनिया लगे रूपहरी !
अधर सुधारस डूबे लगते ,
दिल से निकले आह है !!
महकी महकी लगे दिशाएँ ,
बहकी बहकी गंध है !
लदी लदी सी देह सुवासित ,
चाल पवन की मन्द है !
अधरों पर बिखरे गुलाब हैं ,
मीठी मीठी चाह है !!
आज चंचला देह हिरनीया ,
भरती लगे कुलांचे !
मन की खुशियाँ मन ही जाने ,
दूजा इसे ना बाँचें !
चाहे जितना उतरें गहरा ,
मिल ना पाती थाह है !!
चढ़ा प्रीत पर रंग गुलाबी ,
लगता है जी निराला !
भरे घोषणापत्र हैं हमने ,
किया ना हील हवाला !
हार जीत में भेद नहीं है ,
करना दर्प गुनाह है !!
स्वरचित / रचियता –
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )