अपना मधुमय गीत सुना लो
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कैसे मैं समझाऊं,
तुमसे प्यार बहुत है।
तेरी मधुमय मंजुल वाणी,
मुझसे कुछ कहती कल्याणी,
तेरा अनुपम रूप कलेवर,
नयनों पर बरछी सम तेवर,
धस जाती है उर में प्यारी,
घायल कर नित नयन कटारी।
कैसे आज जता दूं, प्रिय,
अधिकार बहुत है।
मादक गीतों की मृदु कड़ियां,
मेरे जीवन की प्रिय लड़ियां,
इनको आज निछावर करता,
तुम पर तन मन जीवन धरता,
तुम आशा की मधुमय रेखा,
प्राण निछावर तुमको देखा,
तेरे कारण झंकृत है जीवन
इसमें दर्द बहुत है प्रिये।
यदि तुम मेरा अंक सजा दो,
अपना मधुमय गीत सुना दो,
सच कहता हूं सारे जग में ,
हर्षित हो जीवन सरसाये,
छूकर चरण धरा सकुचाये,
कैसे तुमको राग सुना दू
बिछुड़न में बस दर्द बहुत हैं।
तुम जब करती नन्दित जीवन,
लुट जाता है सारा तन मन,
भूलो मत तुम आज सुहागिन,
कल मिलने की बेला रागिन,
बिछुड़न यदि सम्भव बन जाये,
चिता सजा दो तन भी जाये,
तेरे हित में यदि मरना प्रिय
उस पर अंगार बहुत है।
संध्या की यह मधुमय बेला,
रह जाता हूं यहां अकेला,
सूरज की किरणों का मेला,
रचना है जीवन से खेला,
अपना तन मन भार बनाकर,
चल पड़ता गृह हार मनाकर,
कल समझौता होगा
प्रिये इसमें मनुहार बहुत है।।
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कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रूद्रप्रयाग उत्तराखण्ड
पिनकोड 246171