ईमान मौन क्यों
दहशत मे रहता है
पसीजता रहता है
कुपोषित रहता है
हीन सब मानते है
फिर भी
ईमान मौन क्यों ?
साँसे चल रही है
काया लड रही है
रोज मर रही है
रास रच रही है
फिर भी
ईमान मौन क्यों ?
अन्याय भुगतता है
अपराधबोध सहता है
भ्रष्ट को खटकता है
अपमानित रहता है
फिर भी
ईमान मौन क्यों ?
न्याय मिला देर से ,
इल्तजा फिर टेर से ,
तन-मन डरे वैर से ,
तब भी रहे खैर से ,
फिर भी
ईमान मौन क्यों ?
दिन गुजरे , रातें गुजरी
महिने दस गुजर गये ,
पर न्याय के बाद भी ,
न्याय न मिला राज से ,
फिर भी
ईमान मौन क्यों ?
इस कोरोना काल मे ,
मेरा हाल-बेहाल है ,
खुश रहता मन मारकर ,
परिवार , राज से हारकर
फिर भी
ईमान मौन क्यों ?
कहीं रुखसत न हो जाऊं
राज की इस रुसवाई से
तब मेरे परिवार की
लाचारी का दोषी कौन
फिर भी
ईमान मौन क्यों ?
विनोद कुमार जैन वाग्वर सागवाड़ा