ये जीवन
जीवन है खेल कठपुतली का
वो ऊपर बैठा सूत्रधार,
कभी हँसाता, कभी रुलाता
फिर बुलंदियों पर पहुँचता
कभी ख़ाक में मिलाता
जीवन है खेल कठपुतली का
कभी अपनों को पराया कर जाता
कभी अजनबियों में कोई अपना मिल जाता
डोर खींचता, कभी ढील छोड़ देता
यहां से उठाकर, वहां गिराता
और गिरा के फिर कभी गले लगाता
एक दिन तो, ये डोर छूट ही जानी है
अपने अपने किरदार निभाकर
एक ही बक्से में ही रखे जाने है सभी..सुमन”Ruhaani”