लघुकथा

वादा

“तुम्हें गिरते देख मैंने पकड़ लिया है, हाथ मत छोड़ना! कसकर पकड़ के रखो वरना तुम गिरे तो मैं भी नष्ट हो जाऊँगी। तुम्हारे सहारे ही तो मैं जमा हूँ, नदियों में, तालाबों में, नलों से होते हुए तुम्हारे घरों में।”
फिसलती चट्टानों से सम्भलकर वह उठ ही रहा था कि उसके कान फुसफुसाहट सुनकर खड़े हो गए।
“अरे! अरे! देखना छोड़ना नहीं, किसी भी हाल में नहीं। पीने-नहाने के लिए मैं चाहिए तुम्हें कि नहीं ! यदि चाहिए तो फिर कसकर पकड़े ही रहना, वरना उँगली भर रह जाऊँगी मैं।”
झरने के नीचे खड़े होकर पानी से खेलते हुए कानों में कोई आवाज़ दुबारा से गूँजी तो वह चारो तरफ चकरबकर देखने लगा। अपने कल-कल को पीछे छोड़ती हुई वही आवाज़ फिर आयी तो वह पानी की ओर हाथ बढ़ाए हुए स्टेच्यु की स्थिति में आ गया।
“भरा-पूरा शरीर था कभी मेरा लेकिन तुम्हारे दादा-परदादा ने कीमत नहीं समझी मेरी। तुम भी उन्हीं के नक़्शे-क़दम पर चलने लगे हो। अब हाथ भर रह गई हूँ, हो सके तो मेरी कीमत समझो और कसकर थामे रहो मुझे। जैसे तुम्हारे बाद भी तुम्हारे बच्चे मेरी उंगलियों को छू सकें, क्यों थामे रहोगे न!”
मूर्तिवत उसने हाँ में अपनी मुंडी हिला दी।
“यदि तुमने भी छोड़ दिया न तो तुम अपने आँसुओं में ही पाओगें मुझे।”
झरने के नीचे खड़ा वह झरने से आते छटाँग भर पानी को देख सोच में डूब गया।
“सुनो, तुम मुझे जीवन दो बदले में मैं तुम्हें जीवित रखूँगी, वादा है ये मेरा।”

— सविता मिश्रा ‘अक्षजा’

*सविता मिश्रा

श्रीमती हीरा देवी और पिता श्री शेषमणि तिवारी की चार बेटो में अकेली बिटिया हैं हम | पिता की पुलिस की नौकरी के कारन बंजारों की तरह भटकना पड़ा | अंत में इलाहाबाद में स्थायी निवास बना | अब वर्तमान में आगरा में अपना पड़ाव हैं क्योकि पति देवेन्द्र नाथ मिश्र भी उसी विभाग से सम्बध्द हैं | हम साधारण गृहणी हैं जो मन में भाव घुमड़ते है उन्हें कलम बद्द्ध कर लेते है| क्योकि वह विचार जब तक बोले, लिखे ना दिमाग में उथलपुथल मचाते रहते हैं | बस कह लीजिये लिखना हमारा शौक है| जहाँ तक याद है कक्षा ६-७ से लिखना आरम्भ हुआ ...पर शादी के बाद पति के कहने पर सारे ढूढ कर एक डायरी में लिखे | बीच में दस साल लगभग लिखना छोड़ भी दिए थे क्योकि बच्चे और पति में ही समय खो सा गया था | पहली कविता पति जहाँ नौकरी करते थे वहीं की पत्रिका में छपी| छपने पर लगा सच में कलम चलती है तो थोड़ा और लिखने के प्रति सचेत हो गये थे| दूबारा लेखनी पकड़ने में सबसे बड़ा योगदान फेसबुक का हैं| फिर यहाँ कई पत्रिका -बेब पत्रिका अंजुम, करुणावती, युवा सुघोष, इण्डिया हेल्पलाइन, मनमीत, रचनाकार और अवधि समाचार में छपा....|