मुक्तक/दोहा मुक्तक अंकुर शुक्ल 'अनंत' 04/05/2020 प्रीति में बाँधे उसी एक डोर जैसी हो तुम बनारस की सुहानी भोर जैसी हो मैं जहाँ पर प्रेम की चौपाई पढ़ता हूँ तुम उसी गंगा के पावन छोर जैसी हो — अंकुर शुक्ल ‘अनंत’