ग़ज़ल
कौन है छोटा बड़ा इस बात की चर्चा न कर
आइना रख सामने परछाइयाँ देखा न कर
उम्र के अनुभव से कद को नापना अब छोड़ दे
व्यर्थ की बातों में अपने इल्म को जाया न कर
जो दलाली खा रहे हैं उनपे कवितायें न लिख
कीमती शेरों को सस्ती हाट में बेचा न कर
महफिलों में है तेरा चर्चा मगर इतना नहीं
तू अभी गजलों का अपनी मजमुआँ शाया न कर
सुनके जिसको पीर दिल की आँख से झरने लगे
‘शान्त’ इस अन्दाज से गजलों को तू गाया न कर
— देवकी नन्दन ‘शान्त’