मेरे देवता
ज्योत्सना उसे बेइन्तिहा चाहती है। उसका न अब पढ़ने में जी लगता है और न ही घर के किसी काम में। एक अलग ही आसमान में वह स्वयं को उड़ता हुआ पाती है। क्या है यह ? एक ख्वाब सा है पर है बहुत खूबसूरत , वह किसी के दिल की रानी है यह सोचकर ही उसका रोम रोम पुलकित हो उठता है। उसे रोमांच का अनुभव होता है वह उसी राजकुमार के वादों पर यकीन भी करने लगी है।
उसकी बातें सब झूठी है कि वह आसमाँ के तारे तोड़ लाएगा, उसका दामन सितारों से भर देगा , हर पल उसका ख्याल रखेगा , दुनिया की हर खुशी वह उसे देगा …..वगैरह …वगैरह … जब भी वह उससे मिलती है तो वह गोद में सिर रखकर ऐसे ही कभी न खत्म होने वाले वादों की झड़ी लगा देता है। इन सबमें ज्योत्सना को भी बड़ा मजा आता है वह उसके सुझाए आसमां में पर फैलाकर उड़ने लगती है। दीपक की ज्योति ….यही कहता था वो हर वक्त…..गैस पर चढ़ा दूध अपनी सामर्थ्य के अनुरूप जितना निकल सकता था निकल गया था और शेष पतीले में ही जल रहा था जिसकी गंध और धुएँ से किचन भर गया था। हॉल से लगभग दौड़ते हुए नवीन किचन में आकर गैस बंद करता है तब ज्योत्सना की तंद्रा टूटती है।
ओ माई गॉड ….सारा दूध निकल गया ! सॉरी नवीन …
नवीन:- कोई बात नहीं तुम्हारी तबीयत सही नहीं है तो क्यों किचन में आ जाती हो ? काम देखने के लिए नेहा है।
ज्योत्सना :- नहीं… नहीं ! मैं ठीक हूँ बस जरा….!
नवीन :- रहने दो बहाने। और चुपचाप कमरे में जाकर आराम करो ।
ज्योत्सना :- जब से शादी हुई है सिर्फ आराम ही कर रही हूँ। काम कब करूँगी मैं ?
नवीन :- जब तुम पूरी तरह सही हो जाओ । अब चलो भी या यहीं …..
ज्योत्सना :- आई एम सॉरी नवीन …..
नवीन :- बस बस …छोड़ो ये सब मैं ऑफिस जा रहा हूँ। अपना ख्याल रखना , नेहा देख लेगी सारा काम ।
ज्योत्सना को बिस्तर तक छोड़कर नवीन ऑफिस के लिए चला जाता है। कुछ क्षण बाद ज्योत्सना नवीन के बारे में सोचने लगती है। कितना अच्छा व्यवहार है इनका मेरे प्रति बिल्कुल देवता की तरह । इनका त्याग और समर्पण गजब का है। वह भी नवीन को वह सब देना चाहती है जिसका वह हकदार है परन्तु न जाने क्यों नहीं दे पाती ….एक अजीब सा रूखापन उसके व्यवहार में रहता है नवीन के प्रति …उसे अपने आप से ही नफरत सी हो रही थी । क्यों वह बार – बार अतीत से पीछा नहीं छुड़ा पा रही ? क्यों बार – बार दीपक का ख्याल आता है जब वह नवीन के साथ होती है। और जितने भी ख्याल उसके मन में दीपक को लेकर आ रहे हैं वे सब के सब अब बेबुनियाद ही हैं। अब उनकी कोई अहमियत भी तो नहीं।
उसने बिस्तर छोड़ा और कुछ निश्चय करते हुए नहाने चली गई। नहा धोकर नवीन को फोन किया , जल्दी आने के लिए कह कर फोन रख दिया । शादी को एक साल होने को है परन्तु उसने कभी नवीन को वह प्यार और समर्पण नहीं दे पाई जो एक पत्नी एक पति को देती है। कई बार किसी और की गलती की सजा और कोई और भुगतता है। यही नवीन के साथ हो रहा है। गलत दीपक था और गुस्सा नवीन पर उतरता था। वह आज भी उस इन्कार से उबर नहीं पाई जब दीपक ने पारिवारिक मजबूरियों का हवाला देते हुए , इस रिश्ते को यहीं खत्म करने का एकतरफा एलान किया था।
आज उसने निश्चय किया कि जिस जगह दीपक ने रिश्ते का अन्त किया था उसी जगह से वह इस रिश्ते की शुरूआत करेगी। आज नवीन को उसके धैर्य का सही मूल्य देगी । विचार करते – करते कब दो बजे पता नहीं चला , डोर बैल बजी , स्वयं को संयत कर उसने दरवाजा खोला । नवीन के हाथ से बैग लिया और पानी का गिलास थमा दिया। नवीन को यह सब अजीब लगा क्योंकि यह उसके साथ पहली बार हो रहा था।
ज्योत्सना :- आप हाथ मुँह धो कर चैंज कर लो बाहर घूमने चलेंगे ।
नवीन :- (मुस्कुराते हुए ) क्या बात आज तो आप …
ज्योत्सना – जी हाँ …आप …क्यों पति को आप नहीं कह सकती ?
नवीन :- कह सकती हो ! मगर आज तक तो ….
ज्योत्सना :- पुरानी बातों को छोड़ो आप अब और तैयार हो जाओ ।
नवीन :- जो आज्ञा देवी ! कहकर वह लगभग उत्सुकता से उठते हुए चला गया ।
जब तैयार होकर आया तो ज्योत्सना ने टोक दिया ये क्या पहन लिया , यह शर्ट बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा !
नवीन :- आज से पहले तो कभी नहीं टोका देवी ने ।
ज्योत्सना :- कहा न आज से ….
नवीन :- ठीक है देवी ..पहनना क्या है ? वह दे दो ।
ज्योत्सना :- यह लो नेवी ब्लू …आप पर बहुत जँचता है। अब चलो देर मत करो ।
शहर से बाहर एक खूबसूरत पार्क में ज्योत्सना ने गाड़ी रूकवाई और घने पेड़ों की छाँव में लगी बैंच पर बैठते हुए नवीन की बाँहों में लगभग बिखर गई। नवीन को इसका जरा भी अंदेशा नहीं था ,उसने बामुश्किल स्वयं को संभाला। क्या हुआ ज्योत्सना तबीयत तो ठीक है ? नवीन ने पूछा ? ज्योत्सना ने रोते हुए कहा , कुछ मत कहो ..बस चुप रहो । पर हुआ क्या? नवीन ने पूछा ? क्या तुम मुझे माफ कर दोगे ….मेरी हर उस गलती के लिए , हर उस ज्यादातगी के लिए , नाराजगी के लिए जो मैं पिछले एक साल से आपके साथ करती आई ….आपने एक बार भी मुझे नहीं टोका …ना डाँटा …ना पति होने का अधिकार जताया …क्यों …? क्यों नहीं मारा एक थप्पड़ भी मुझे जब मैं तुमसे अलग ….रोते – रोते उसका गला रुँध जाता है।
मैंने तुम्हारे साथ कितना गलत किया बदले में तुम सिर्फ स्नेह लुटाते रहे। मेरी बेरुखी को बरदास्त करते रहे। इतना धैर्य कहाँ से लाते हो तुम ?(सिसकते हुए) आज से और इसी क्षण से मैं स्वयं को तुम्हें सौंपती हूँ। हे मेरे देवता मेरा सर्वस्व समर्पण स्वीकार करो । इसी जगह पर मैंने स्वयं को खोया था , इसी जगह पर मैं आज तुम्हें पाना चाहती हूँ। मैं तुम्हें कुछ बताना चाहती हूँ …..नवीन ने टोकते हुए कहा कुछ भी बताने की जरूरत नहीं है। भूल जाओ जो कुछ हुआ …खोल दो मन की गाँठों को और जो सामने खूबसूरत जिन्दगी है उसे जीओ ….ज्योत्सना ने चौंककर कहा तो क्या तुम नहीं जानना चाहते ? चाहता भी नहीं और चाहूँगा भी नहीं। मैं अतीत में विश्वास नहीं करता ..हाँ मुझे यकीन है कि वर्तमान में तुम मेरी हो …और यही मेरे लिए पर्याप्त है। ज्योत्सना की बाँहों की पकड़ और मजबूत हो गई …नवीन का कंधा आँसुओं से तर होता जा रहा था। जैसे पार्वती अपने शिव को जलाभिषेक कर रही हो ….पश्चाताप के जल से आज प्रणय की ग्रंथि और मजबूत हो रही थी । तुम कितने अच्छे हो बिल्कुल देवता की तरह ….मेरे देवता ….
— मनोज कुमार सामरिया “मनु”