कविता

चलो आज फिर से

चलो आज फिर से,
एक बार अजनबी होकर मिलते हैं।
चलो आज फिर से ,
एक दूसरे का नाम पूछते हैं।
चलो आज फिर से
बैठकर एक दूसरे से बातें करते हैं ।
चलो आज फिर से ,
कहीं टहलने चलते हैं।
चलो आज फिर से,
आसमान तले तारों की रात में
गुनगुनाते हैं।
चलो आज फिर से,
एक बार फिर ख्वाबों की
दुनिया में खो जाते हैं।
चलो आज फिर से,
एक बार फिर एक दूसरे को मनाते हैं ।
चलो आज फिर से,
एक दूसरे के हो जाते हैं

— अमित डोगरा

अमित डोगरा

पी एच.डी (शोधार्थी), गुरु नानक देव विश्वविद्यालय अमृतसर। M-9878266885 Email- [email protected]