लघुकथा

विरोध प्रदर्शन

विरोध प्रदर्शन
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एक गोदाम में मोमबत्तियों के एक समूह की आपस में बातें हो रही थीं । एक मोमबत्ती ने अपनी खुशी जाहिर करते हुए कहा ,” भला हो इस कोरोना का , जिसने सारे असल दरिंदों को घरों में कैद कर दिया है , नहीं तो अब तक न जाने कितनी निर्भयाओं की इज्जत लूटी जाती , हत्याएं होती और फिर उनके लिए विरोध प्रदर्शन के नाम पर हमें जलना पड़ता । कम से कम अब हमें जलना तो नहीं पड़ रहा है ? हम गोदाम में ही सही सुकून से तो हैं । ”
दूसरी मोमबत्ती ने रहस्य भरे स्वर में कहा ,” इंसानों की दरिंदगी वहीं तक नहीं है , उसके शिकार इंसानों की एक प्रजाति भी है जिन्हें मजदूर कहा जाता है । सुना है कि इसी प्रजाति के 16 मजदूर पटरी पर सोये हुए थे और ट्रेन से कटकर मर गए । ”

तीसरी मोमबत्ती ने कहा ,” वो मरे तो मरे ! तुम्हें इतना दुःख क्यों हो रहा है ? ”
” अब उनका मातम मनाने के लिए जलना तो हमें ही पड़ेगा न ! ” दूसरी मोमबत्ती ने रुआंसी आवाज में कहा ।
” अरे बेवकूफ ! ये मरनेवाले मजदूर प्रजाति के लोग थे और क्या तू इतना भी नहीं जानती कि इस प्रजाति के लिए हमें नहीं जलाया जाता ? ” तीसरी ने समझाया था ।

स्वरचित / मौलिक
राजकुमार कांदु

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।