आखिरी स्तम्भ
मर मर कर जी रहे हैं
जी जीकर मर रहे हैं
खाली पेट वाले ही
जलती धूप में भी चल हैं
देश की अर्थव्यवस्था के नींव के पत्थर !!
हमारे ये मजदूर हुए है मजबूर
कैसी विडम्बना है
ठेकेदार के पास पैसे नहीं
राज्य के पास रोटी नहीं है
उनके पास घर नहीं है
न ठिकाना
न भरपेट खाना
फिर भी उठाये है देश का वजन
घिसटते हुए जी रहे हैं …या
मजबूर है जीने को ..और मर रहे हैं
साधनहीन अर्थहीन
अलक्षित लक्ष्य को बेधते हैं
अर्जुन बनकर हर कदम पर
हाँ यही है हर देश की अर्थव्यवस्था का
अंतिम स्तम्भ