सुनो माँ
सुनो माँ! कभी तुम भी तो लड़की हुआ करती होगी ना
किसी बात पे अपने पापा से झगड़ती होंगी
जरा सा हाथ जलता होगा तो चिल्लाती होंगी
तब तुम यूं खामोशी से हर दर्द नही सहती होंगी
माँ कभी तुम भी तो लड़की हुआ करती होगी न
कभी रात भर बहनों के साथ जागकर
तुम्हारी भी कोई अलसाई सुबह हुआ करती होगी
कभी तुम भी सबसे पहले खाना खाती होगी
कभी तुम भी नई फ्रॉक पहन कर इतराती होंगी
स्कूल जाने के लिए अपनी चोटी माँ से बनवाती होंगी
तब ये खोई खोई आंखें भी ख्वाब बुना करती होंगी
शायद कोई सपनों का शहजादा उनमें भी रहा करता होगा
माँ कभी तुम भी तो लड़की हुआ करती होगी न
तब तुम सिर्फ खुद के लिए जीया करती होंगी… सुमन