आत्मकथा

सारिका भाटिया की कहानी – 2

(3) मयूर विहार में शिफ्ट

हम जिस मकान में रहते थे वह किराये का मकान था। मेरे फूफा जी मिलिट्री में थे। उनका ट्रांसफर होने के कारण मकान खाली था। हम जालंधर से आकर दिल्ली में यहीं रुक गये थे। किराया पर रहते थे, अपना मकान नहीं था। लेकिन जब मैं पैदा हुए थी तो पापा की किस्मत बदल गयी थी, क्योंकि मेरे आने के बाद दुकान, मकान और कार की लाटारी निकली। मकान डीडीए फ्लैट्स मयूर विहार में मिला था। मां बाप खुश थे, लेकिन मेरी बोलने‌ की चिंता में परेशान थे। ज्यादा बोलना और सुनने की परेशानी थी। डाक्टर से इलाज तो कराया था, पर कोई असर नहीं पड़ा। मैं जब भी रोती थी, तो पापा मुझे हंसाते थे, मां भाई भी। मेरे पापा को तब चिंता होती थी जब स्कूल जाती थी। पापा मुझे स्कूल कार में छोड़ने जाते थे। मुझे अकेला नहीं छोडते थे। स्कूल की बस में नहीं जाने देते थे। पापा मेरी बात मानते थे, क्योंकि मुझे खुश रखना चाहते थे। जिस चीज से मुझे खुशी मिलती थी, वो मेरे लिए लाते थे,‌ पर रोने नहीं देते थे।

अचानक एक दिन स्कूल से प्रधानाध्यापक का फोन आया कि आप जल्दी आ जायें, कुछ बात करनी है। मेरे मां बाप चिंता में थे। जब स्कूल पहुंचे तो मैं बहुत रो रही थी। मेरे पापा परेशान थे। हुआ यह था कि जब चैथी क्लास में थी, तो मेरी टीचर ने मुझे थप्पड़ मारा। जो मारा वो‌ कान तक पहुंच गया, जिससे मेरे कान में दर्द होने लगा। मारा इसलिए था कि मैं टीचर के प्रश्न का उत्तर नहीं दे रही थी। जब सुनूँगी नहीं मो बोल कैसे पाऊँगी? फिर पापा ने मयूर विहार में ईएनटी डाक्टर को दिखाया। उन्होंने कहा कि यह बोल और सुन नहीं पायेगी। तब पापा और मां बहुत रोये। फिर हम अपने पटेल नगर गुरु के पास गये। उनके आशीर्वाद से मैंने सुनना और बोलना शुरू कर दिया। इलाज के लिए पैसा नहीं था। डाक्टर ने कहा कि एक कान में तेल डालकर देखें, शायद ठीक हो जाये। कोई असर नहीं पड़ा। फिर डाॅ प्रेम कक्कड़ के पास गये पटेल नगर, वहीं डाक्टर का क्लीनिक था।

जब उन्होंनेे मेरी परेशानी देखी और मुझे देखा तो पापा को बोले कि आपकी बेटी बहुत साहसी और हिम्मतवाली है। ये आपकी भाग्यशाली बेटी है। ये जरूर बोलेगी। लेकिन इसको हीयरिंग ऐड मशीन लगानी होगी। उन्होंने मेरे बोलने का इलाज किया था, लेकिन पैसा कम लेते थे क्योंकि डाक्टर को मुझमें सुंदरता और प्रतिभा दिखती थी‌। वो मुझे बेटी बोलते थे। बातें एक गुरु की तरह से प्यार करते थे। मां बाप को बोलते थे कि आप दुनिया की बातों में मत आये। परेशान होने की जरूरत नहीं है।

लेकिन मेरी एक कमी थी। इलाज करके घर आकर रोती थी, क्योंकि मुझे डाक्टर से नफरत थी। मां बाप पर गुस्सा करती थी। डाक्टर के पास जाने में मैं बहुत रोती थी, लेकिन डाक्टर के यहाँ जाती थी ‌तो उनके साथ बात करने में अच्छा लगता था। नरम हो‌ जाती थी। अनुशासन बनाना सीखा। पापा ने उनको बताया ‌कि इस तरह से व्यवहार करती हैं ‌घर आकर। उन डाक्टर साहब ने कहा कि आप इसे डांटकर नहीं, प्यार से बात करेंगे, तो गुस्सा नहीं होगी। मेरे डाक्टर के क्लीनक में मुझे जो अच्छा लगता था वो मुझे देते थे चाहे खिलौना या बुक कुछ भी हो। उसमें खुश रहती थी और गुस्सा कम हुआ। यही मेरे घर में भी होता था, पापा मां भाई सब मेरा ख्याल रखते थे। मुझे खुश देखकर खुश होते थे। डाक्टर मेरे व्यवहार को जानते थे। इसलिए जब भी इलाज होता था तो इस तरह से बातें करते थे कि मैं खुश रहूं।

(4) हीयरिंग ऐड मशीन की कहानी

जब हीयरिंग ऐड मशीन लागनी की बात आयी, तब मुझे नहीं पता था कि यह क्या है। मेरी मां ने प्यार से समझाया। मैं सिर्फ मां बाप डाक्टर की बातें समझ पाती थी। बहुत रोयी कि मुझे नहीं लगाना। डाक्टर ने भी समझाया। मैंने इस‌के लिए बात नहीं मानी। डाक्टर ने जब मेरा कान का टेस्ट कराया था, तो उन्होंने मेरे मां बाप को बोला कि इसे थोड़ा सुनाई देता है। कान में नसें दब गयी हैं। पूरा खराब नहीं है। थोड़ा सुन सकती है, लेकिन मशीन लगानी होगी। और डाक्टर ने मुझसे कहा- तुम बहुत किस्मतवाली हो कि भगवान ने थोड़ा सुनने की शक्ति दी। कुछ लोगों को तो बिल्कुल सुनाई नहीं देता है। लेकिन तुम्हें मशीन लगानी होगी। तब मशीन ली और स्कूल जाना था लगाकर, तो मैं घर आकर बहुत रोयी। बोली मैंने नहीं लगानी है। मशीन ‌तो‌ ले ली थी, पर लगायी नहीं।

(5) स्कूल की कहानी

मैंने कक्षा 6 से 10 तक मशीन नहीं लगायी थी, क्योंकि बच्चे देखते थे और मैं रोती थी। मैं बिना मशीन लगाये पढ़ी थी। मेरे मां बाप को चिंता होती थी। कहते हैं हर जगह भगवान का रूप होता है। मैं 1 से 5 क्लास में तो निजी स्कूल में पढ़ी थी, इसी स्कूल में टीचर ने मुझे मारा था कान में।

मैं कक्षा 6 से 12 तक सरकारी स्कूल में पढ़ी थी। सरकारी स्कूल में हमारी क्लास टीचर थीं आशा गुप्ता आज भी उनसे मेरी बात होती है। मेरी मां ने उनको मेरा बारे में बताया था। उन्होंने कहा- आप चिंता मत करें, मैं उसका ख्याल रखुगी। आशा गुप्ता टीचर ने 6 से 12 तक हर क्लास में सभी टीचर को बोल रखा था। वो मुझसे मिलने भी आती थीं, जब भी फ्री क्लास होती थी। वे बहुत अच्छी टीचर हैं। जो मुझे समझ नहीं आता था वो मुझे समझाती थीं। एक बार तो उन्होंने मुझे मशीन लगाने के लिए बोला, तो मैं कुछ नहीं बोली, चुप थी। पढ़ने का शौक था। हमेशा पढ़ती रहती थी। पर मैं बहुत भोली थी। मेरी क्लास की लड़कियाँ बहुत चालाक थीं। मैं कम बोलती थी। मुझे कभी बेवकूफ बना देती थीं तो मैं बहुत रोती थी। मुझे कोई दोस्त नहीं बनाता था। मैं बेंच में अकेले खाना खाती थी। घर आकर रोती थी। मैं मां से बोलती थी। मां मुझे कोई दोस्त नहीं बनाता है। मेरा मजाक उड़ाते थे। मां मुझे कहती थी- इन बातों में मत ध्यान नहीं दे, पढ़ाई पर ध्यान दे। मैं बोलती थी- मुझे स्कूल नहीं जाना। लेकिन जाना पडता था। मैं पढ़ाई के कारण कमजोर थी, थोड़ी मंदबुद्धि थी। कुछ बातें समझ नहीं आती थीं। मां बाप फिर घर आकर प्यार से पढ़ाते थे मुझे। पर पूरा अनुशासन रखती थी।

एक तरफ मैं पढ़ाई में कमजोर थी, पर मुझे ड्राॅइंग का शौक बढ़ा, क्योंकि आशा गुप्ता मेरी ड्राॅइंग टीचर थीं, जिसके कारण से अच्छे मार्क्स आते थे। बाकी विषयों में कमजोर थी। केवल ड्राॅइंग और आर्ट एंड क्राफ्ट में अच्छे मार्क्स आते थे। समझने में मेरी मां मदद करती थी। मैं भोली सीधी थी, बच्चे तो मजाक उड़ाते थे। मेरे साथ कोई सहेली भी नहीं थी। कोई बैठता नहीं था, क्योंकि मुझे बातें करना नहीं आता था, सब बोर होते थे मुझसे। पढ़ाई में भी जीरो थी। सबके अच्छे मार्क्स आते थे, मेरे नहीं, तो आकर रोती थी। मां को बोलती थी- मुझे स्कूल नहीं जाना। मां मेरी प्रेरणा और सहेली है। हमेशा प्यार से समझा देती थी। मैं आशा गुप्ता टीचर को बोलती थी। वे मेरी क्लास के बच्चों को डांट देती थीं। सबसे ज्यादा परेशान थी मेरे मार्क्स अच्छे नहीं आते थे। बस पास हो जाती थी। जब भी फाइनल परिणाम आता था, मेरी टीचर यही कहती मां को- यह लड़की कैसे पास हो जाती है, भगवान की कृपा है। हम सबको सारिका की चिंता होती है। मेरी मां कभी मुझे डांटती नहीं थी, ना पापा। मां बाप को पता था कि डांटना ठीक नहीं है। वे मुझे समझाते थे मशीन लगा लो, मार्क्स अच्छे आयेंगे। लेकिन मैं बात नहीं मानती थी। ।

सारिका भाटिया

जन्म तिथि-08/11/1980 जन्म स्थान- दिल्ली पिता का नाम- late भोज राज भाटिय़ा मां का नाम- नीलम भाटिया भाई- दो भाई शैक्षणिक योग्यता- (1) बीए (ऑनर्स) राजनीति विज्ञान दिल्ली यूनिवर्सिटी मैत्रेयी कॉलेज 2002 (2) एम ए (राजनीति विज्ञान) दिल्ली यूनिवर्सिटी दौलत राम कॉलेज 2004 (3) Bachelor of Library and Information Science (BLIS) IGNOU 2005 (4) Cerficate in Computing IGNOU 2006 (5) Primary teachers Training course 2013 Delhi अनुभव- (1) Teacher ( Udayan Care (NGO) 2004, 3 साल काम किया। (2) Insurance agent Hdfc 2005 -2007 (3) Daycare day boarding teacher Eurokids playschool Delhi Mayur vihar delhi 2010- 2013 वर्तमान में- 1) उपप्रधान (बाह्य), विकलांग बल 2) अध्यापिका, (गरीब बच्चों को पढाना), निर्भेद फाउंडेशन गाजियाबाद ईमेल - [email protected] रुचियाँ - (1) पढ़ना, (2) बच्चों को पढ़ाना, (3) गाना, आध्यात्मिक संगीत सुनना, (4) समाज सेवा (5) ड्राइंग पेंटिंग, anchor stitch kits,art and craft , (6) सकारात्मक विचार (positive thought) पढ़ना।