सारिका भाटिया की कहानी – 3
(6) क्लास 10 की कहानी
जब क्लास 10 बोर्ड आया तो मेरे पापा ने मेरे पढ़ाई का ध्यान रखा। पापा मुझे सुबह उठकर पढ़ाते थे। अनुशासन बना रहा मुझ में। पर कक्षा 10 बोर्ड में हर महीने सेमिस्टर प्रि-बोर्ड होते थे। पर उसमें मेरे खराब मार्क्स थे और फेल भी, फिर बहुत रोयी। थोड़ा नकारात्मक सोच आया और ईश्वर को कोसती थी, गुस्सा करती थी कि ऐसा क्यों किया आपने मेरे साथ। मैं पापा को बोलती थी- क्या मैं 11 में नहीं जा पाऊंगी। मेरे पापा ने कहा- तुम जरूर जायेगी। तुम मेरी बहादुर बेटी हो। बोर्ड परीक्षा चल रही थी। उन्होंने मुझे कहा- तुम्हें जो बता रहा हूं, उस तरह से पढ़ो। जैसे वो कहते थे वैसे पढ़ती थी।
(7) 10 की परीक्षा देने के बाद
अभी परिणाम का इंतजार था। मई की छुट्टियों में मेरी वडोदरा गुजरात में छोटी बुआ जी के लड़के की शादी थी, यानी कि मेरे भाई की शादी थी मई में। उसमें हम सब परिवार गये थे। तब मैं पहली बार घर से बाहर निकली थी। न सुनने से मुझे हीनभावना न आये, यही इसका कारण था। मेरा पढ़ाई में ध्यान रहता था। परिवार से कम बात करती थी। भाई की शादी में मुझे अच्छा नहीं लग रहा था क्योंकि सब मौज मस्ती कर रहे थे, मैं बोर हो रही थी। मुझे किसी की बात समझ में नहीं आ रही थी। अपनी मां को कहा- चलो ना घर, मुझे नहीं रुकना है। मैं रो रही थी और गुस्सा आ रहा था। ये नहीं हो सकता है। पूरी शादी करने के बाद और अगले दिन की वापसी की ट्रेन थी। एक बात जरूर थी। मेरी मां-बाप ने कभी ये नहीं बताया था कि जिस भैया की शादी थी उनकी पत्नी डाक्टर है कान-नाक-गले की। यानी मेरी अल्का भाभी डाॅक्टर है। शादी के बाद मेरा बुआ ने मेरी भाभी को मेरे बारे में बताया था। मेरे पापा से बात हुई थी भाभी की। नयी-नयी शादी हुई थी, फिर भी बता दिया था मेरे बारे में।
(8) भाभी से मुलाकात
पर मेरे मदद के लिए मशीन लगाने की बात के लिए नहीं की थी, क्योंकि उनकी नयी-नयी शादी हुई थी। भैया-भाभी को हनीमून के लिए शिमला-मसूरी जाना था। पर दिल्ली की ट्रेन से जाना था, तो हमारे घर रुक गये थे। मैं भैया-भाभी के पास जाने से डर रही थी, क्योंकि डाक्टर है। भाभी डाक्टर है ये पता था, पर ये नहीं पता था भाभी ईएनटी डाक्टर है। भाभी को पता था मेरे बारे में, तो उन्होंने पहले मुझे प्यार से बात की। बहुत अच्छे बात कर रही थी। मैं भाभी से प्रभावित हो गई। उन्होंने कहा- मुझे दोस्ती करोगी? मैं चुप थी। लेकिन उनका व्यवहार बहुत अच्छा लगा था मुझे। मैंने उनसे कहा- आप कब आयेंगी मिलने? उन्होंने कहा फिर आऊंगी। मैं उदास थी। वो जा रही थी हनीमून के लिए, मेरा उनसे बात करने का मन था। मुझे बहुत अच्छी लगी थी।
(9) क्लास 10 का परिणाम
जब क्लास 10 का परिणाम आया, तो कम मार्क्स थे, पर पास जरुर हो गई थी। मेरे पापा मां खुश थे पास होने पर। लेकिन मैं उदास रो रही थी? क्योंकि कम मार्क्स थे। पापा ने मुझे समझाया कि बेटी मैंने कहा था तुम बहुत हिम्मतवाली हो। तुमने जो कर दिखाया वो उम्मीद नहीं थी मुझे। लेकिन इसमें खुश हूं तुम पास हो गई। मैंने पापा को कहा- आप हमसे नाराज तो नहीं, कम मार्क्स आये। उन्होंने कहा- नहीं। पर उन्होंने मशीन वाली बात नहीं की क्योंकि उनको पता था मुझे गुस्सा आयेगा।
(10) क्लास 11 में प्रवेश और मशीन लगाना
मैं कक्षा 11 में आयी तो गर्मी की छुट्टियाँ थी। उसी साल भैया भाभी चंडीगढ़ शिफ्ट हो गए थे। उनकी डाक्टरी की पढ़ाई के लिए आये थे। पापा की भाभी से बात होती थी। उन्होंने भाभी को बोला- आप सारिका को समझा दो किसी तरह से मशीन लगाने को। भाभी ने कहा गर्मी की छुट्टियों में बुलाने और चंडीगढ़ घुमाने के लिए। लेकिन भाभी ने मेरे पापा को कहा- मामाजी आप सारिका को ये मत बताना कि किस बात के लिए जा रहे हैं। बस बोलना घुमाने के लिए। मैं खुश थी कि भाभी से मिलने जा रहे हैं। जब घर गये चंडीगढ़ तो भैया भाभी ने चंडीगढ़ घुमाया हम सबको। यह मई 1998 में पोखरण-2 परीक्षण के समय की बात थी। ड्यूटी के दिन भाभी ने कहा- चलो, आज तुम्हें हॉस्पिटल क्लीनिक दिख देती हूं। मैंने कहा- मैं बोर हो जाऊंगी। उन्होंने कहा- तुम अपनी बुक ले चलो, पढ लेना। तो मैं राजनीति विज्ञान की बुक ले गयी थी। मुझे पढ़ाई का ध्यान रहता था। हॉस्पिटल में राजनीति विज्ञान की बुक ले गयी थी, हाथ में थी। पर मम्मी-पापा नहीं थे मेरे साथ। भाभी मुझे स्कूटर में ले गयी थी।
भाभी की एक सहेली से ईएनटी एपाॅइंटमेंट कान के टैस्ट का ले रखा था। मतलब योजना बनाकर रखी थी। फ्री कर रही थी। जब मैं भाभी के क्लीनिक गयी, उन्होंने प्यार से सकारात्मक बातें की। मेरी एक आदत है कि जहां भी जाती हूं किसी से बात नहीं करती हूं। जो मुझे कहते थे मान जाती थी। हॉस्पिटल में भाभी की इज्जत और सम्मान और हॉस्पिटल का मान समझकर मैं चुप रही। जब उन्होंने मेरा कान का टैस्ट किया, तो मुझे दोस्त की तरह बात कर रहे थे।
वो मुझे पूछ रहे थे टैस्ट के समय बताना कि आवाज कहां आ रही है। मैंने जान-बूझकर कुछ झूठ बोला कि आवाज आ रही है। जबकि भाभी की सहेली जान चुकी थी कि झूठ बोल रही है। जब उन्होंने टैस्ट कर लिया। उन्होंने मेरी भाभी को रिपोर्ट भेज दिया और भाभी ने मेरा कान टेस्ट किया।
मैं रो रही थी बहुत। उन्होंने पानी पिलाया, चुप कराया। मैं घबरा रही थी। उन्होंने कहा- कुछ खाने का मंाग दूं? मना कर दिया मैंने क्योंकि बाप मां के पास जाना था। मम्मी-पापा बाद में आये थे। उन्होंने मुझे प्यार से समझाया। देखो आगे बढ़ना है तो मशीन लगानी होगी। तुम भाग्यशाली हो कि ईश्वर ने आधी सुनने की शक्ति दी। पापा ने उनको बताया कि कम मार्क्स में रोती है। उन्होंने कहा- यही हीयरिंग ऐड मशीन लगाओ। लोगों की परवाह मत करो। भाभी की बात माननी पडी। पर मैं उदास और रो रही थी। किसी से बात नहीं कर रही थी। मां को बोला अभी चलो घर। भाभी ने प्यार से अकेले में खुश करने के लिए बहुत अच्छा खाना बनाया। मैंने खाया, पर मैं गुमसुम थी। अगले दिन दिल्ली वापस जाना था। लेकिन मैंने भाभी को कहा- एक मशीन लगाऊंगी। उन्होंने कहा- नहीं दोनों में जरुरी है। उन्होंने पापा को बोला हुआ था कि दिल्ली जाकर जब मशीन लगा ले, तो बताना। मैं चुप थी, उदास थी। डाक्टर भूटानी दिल्ली के मशहूर सीनियर डाक्टर हैं, जो आज भी है। आज इन डाक्टर से मशीन लेती हूं।
दिल्ली जाकर मशीन के लिए शुरू में काफी परेशानी हूई, क्योंकि गर्मी की छुट्टियों में नयी मशीन ली और लगायी। सबसे पहले मुझे चिड़िया की आवाज सुनाई दी। जो मुझे अच्छा लगा रहा था फिर घर के पंखे की आवाज। तब एक कान में मशीन लगाया था। दोनों तरफ बोला था, पर मन नहीं था। लगाया था। जब गर्मी की छुट्टियाँ खत्म हुईं तो घबरा रही थी स्कूल जाने से, क्योंकि बच्चों देखेंगे और बोलेंगे। मुझे याद है जब मिलती थी किसी से पुछते थे- ये कान में क्या लगा रखा है। मुझे दुःख होता था सुनकर। मेरी मां ने कहा- ये बोल दो कान में गाना सुन रही हूं। पर मैं चुप रहती थी।
लेकिन भाभी की बात याद आ गई- लोगों की परवाह मत करो। तो उनके टिप्स ध्यान लगाकर अपने को मजबूत बनाया। सोच लिया जिसको जो बोलना बोलने दे। मुझे टीचर की बात समझ आ रही थी। जो पढ़ाई मेरे लिए मजबूत बना चुकी थी।