सभी वस्तुओं का देश में उत्पादन ही आत्मनिर्भरता व देशोन्नति का मूल है
भारत विश्व का सबसे प्राचीन राष्ट्र है। भारत ने ही सृष्टि के आरम्भ से विश्व के लोगों को भाषा एवं ज्ञान दिया है। विश्व के प्राचीनतम ग्रन्थों में प्रमुख मनुस्मृति के अनुसार भारत वा आर्यावर्त देश ही विश्व में विद्वान, चरित्रवान व गुणी लोगों को उत्पन्न करने वाला देश है। यहां के ऋषि, मुनि, विद्वान व आचार्य अपने सुचरितों से पृथिवी के सब मनुष्यों को ज्ञान तथा चरित्र की शिक्षा दिया करते थे। समय-समय पर देशों के उत्थान व पतन होते रहते हैं। यदि पतन होने पर मनुष्य उसके कारणों पर विचार न कर उनका सुधार नहीं करते, तो वह मनुष्य-मनुष्य कहलाने के अधिकारी नहीं होते। महाभारत काल व उससे कुछ वर्ष पूर्व से भारत में पतन होना आरम्भ हो गया था। पतन रोकने के लिये योगेश्वर श्री कृष्ण व तत्कालीन अनेक विद्वानों ने प्रयत्न किये थे परन्तु अहंकारी राजा के कारण उन्हें सफलता नहीं मिली थी। महाभारत का महायुद्ध में देश के महारथी, महाबली, विद्वान व योद्धा मारे गये थे तथा देश के उद्योग तथा शिक्षा आदि व्यवस्थायें नष्ट-भ्रष्ट हो गईं थीं। इससे देश में अज्ञान उत्पन्न हो गया था। इस अज्ञान के कारण देश में अन्धविश्वास व कुरीतियां उत्पन्न हुईं। धर्म विषयक सिद्धान्तों व मान्यताओं में भी भ्रान्तियां उत्पन्न होने के साथ कुछ लोगों के स्वार्थ के कारण यज्ञों में हिंसा की जाने लगी थी। इस कारण कालान्तर में देश में बौद्ध व जैन आदि नास्तिक मतों का प्रादुर्भाव हुआ। विश्व में ईसाई व इस्लाम मत का प्रादुर्भाव भी तत्कालीन अज्ञान, कुरीतियों व कुव्यवस्थाओं को दूर करने के लिये किया गया था।
संसार में हम देखते हैं कि संसार में ज्ञान व विज्ञान का विकास तथा उन्नति किसी एक व्यक्ति द्वारा सम्भव नहीं होती। इसमें सभी ज्ञानी व वैज्ञानिकों को अपनी बौद्धिक क्षमताओं के अनुसार योगदान देना होता है। यदि किसी एक ही वैज्ञानिक की बात को सर्वत्र लागू किया जाये और भावी वैज्ञानिकों के विचारों व अनुभवों से लाभ न उठाया जाये, तो वह देश, ज्ञान-विज्ञान सहित मत, पन्थ आदि उन्नति करने के स्थान पर समय की दौड़ में पिछड़ जाते हैं। भारत की विशेषता रही है कि इसे सृष्टि के आरम्भ में ही ईश्वर से वेदों का ज्ञान प्राप्त हुआ। ईश्वर सर्वज्ञानमय है अतः उसका दिया ज्ञान भी सभी भ्रान्तियों से रहित स्वतः प्रमाण एवं पूर्ण था। इसमें वृद्धि तथा किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं किया जा सकता था। इस वेदज्ञान को सुरक्षित रखा जाना था। हजारों शताब्दियों तक ऐसा किया भी गया परन्तु महाभारत युद्ध के बाद लोगों के आलस्य-प्रमाद के कारण वेदों के सत्य अर्थों को भुला दिया गया और वेदों के अनेकार्थों में से सत्य अर्थों को भुलाकर उनके लौकिक अर्थों का अनुचित व अहितकर प्रयोग किया गया जिससे अनेक समस्यायें पैदा हुईं। महाभारत युद्ध के बाद ऋषि दयानन्द (1825-1883) का प्रादुर्भाव हुआ। उन्होंने उपलब्ध व प्रचलित वेदार्थों पर विचार किया और उनका उपलब्ध प्रामाणिक व्याकरण व वेदार्थ में सहायक ग्रन्थों से मिलान किया। उन्हें ज्ञात हुआ कि पूर्ववर्ती विद्वानों से अनेक भूले हुई हैं। उन सब भूलों का सुधार कर ऋषि दयानन्द ने प्रमाण सहित सत्य वेदार्थ, सिद्धान्तों व मान्यताओं का प्रकाश किया। उन्होंने सत्यार्थप्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका, संस्कारविधि, आर्याभिविनय सहित ऋग्वेद तथा यजुर्वेद पर प्राचीन आर्ष ग्रन्थों के आधार पर प्रमाणयुक्त भाष्य लिखा जो समयानुकूल एवं पूर्ण प्रामाणिक है। ऋषि कृत वेद भाष्य से विश्व के सभी मनुष्य लाभ उठा सकते हैं। वेदों की शिक्षाओं को अपने जीवन तथा देश की व्यवस्थाओं में लागू करने से ही देश का कल्याण हो सकता है। वेदों का नियम है कि सत्य के ग्रहण करने और असत्य को छोड़ने में सर्वदा उद्यत रहना चाहिये। इस नियम का पालन कर हम अपनी निजी व देश की सभी समस्याओं का निदान कर सकते हैं जिनमें से स्वदेशी वस्तुओं का निर्माण व उपयोग सहित सभी क्षेत्रों में आत्म-निर्भरता का विषय भी सम्मिलित है।
देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने दिनांक 12-5-2020 को राष्ट्र के नाम अपने सम्बोधन में देश को आत्मनिर्भर बनाने की आवश्यकता पर बल देते हुए इसके लिये स्वदेशी वस्तुओं का उत्पादन एवं उपयोग करने का मन्त्र दिया है। हमारी संस्कृति में यह बातें पहले से ही विद्यमान हैं परन्तु हमारे विगत शासकों ने हमें इनसे दूर किया हुआ था। आज बदलती परिस्थितियों में आत्मनिर्भरता एवं स्वदेशी वस्तुओं का अधिकतम आवश्यकता के अनुसार उपयोग ही देश की रक्षा एवं उन्नति का एक आदर्श सिद्धान्त बन गया है। हमारे कुछ पड़ोसी एवं ऐसे व्यवसायिक देश हैं जिनसे हम लाखों करोड़ रुपये का व्यापार करते हैं। उनका व्यवहार हमारे लिये हितकर होना चाहिये परन्तु समय आने पर वह हमारे विरुद्ध शत्रुतापूर्ण व्यवहार करते हैं। क्या हमें ऐसे देशों से व्यापार करना चाहिये और उनकी वस्तुओं का उपयोग करना चाहिये? इसका एक ही उत्तर है कि हमें उरनसे अपनी न्यूनतम आवश्यकता के आधार पर व्यापार करना चाहिये। जिन वस्तुओं का हम आयात करते हैं उनका हमें अपने देश में उत्पादन करना चाहिये। अपने उत्पादों की गुणवत्ता को बढ़ाना चाहिये और आयातित वस्तुओं की अपनी आवश्यकतायें न्यूनतम रखनी चाहियें। यह सिद्धान्त हमें ऋषि दयानन्द एवं सभी वैदिक आचार्यों के साहित्य एवं जीवन में देखने को मिलता है। मनुष्य की प्रमुख आवश्यकतायें भोजन, वस्त्र, शिक्षा, चिकित्सा, रक्षा, यातायात तथा तकनीकि ज्ञान के आदान-प्रदान की ही मुख्य हैं। हमें इन सभी बातों में स्वावलम्बी व आत्मनिर्भर बनना चाहिये। इसके लिये हमें अपने भीतर आत्मगौरव का भाव लाना चाहिये। शत्रुता करने वाले देशों की किसी वस्तु का उपयोग तो करना ही नहीं चाहिये जिसका हम त्याग न कर सकते हों और जिसे हम मित्र देशों से प्राप्त न कर सकते हों। यदि हम विदेशी वस्तुओं का प्रयोग करते हैं तो इससे हमारा देश कमजोर होता है और हम मूर्ख सिद्ध होते हैं। यह बातें अंग्रेजी व विदेशी साहित्य पढ़ने वाले लोगों के मस्तिष्क में नहीं आ सकती। पहले अंग्रेजों ने हमारे देश के धन को लूटा था और हमें अंग्रेजी पढ़ाकर अपने संस्कारों से दूर किया। अब कुछ विदेशी देश हमें विदेशी वस्तुओं के आयात के नाम पर लूट रहे हैं और मूर्खता व अज्ञानवश हम स्वयं को लुटवा रहे हैं। इसका समाधान यही है कि हम अपना ज्ञान व विज्ञान बढ़ायें, अपने शरीरों को शुद्ध व सात्विक भोजन से स्वस्थ रखें, पशुपालन कर देश में दुग्ध व दुग्ध पदार्थों का उत्पादन बढ़ायें, अन्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बनें, देश में सभी वस्तुयें देश की आवश्यकता के अनुसार स्वदेशी उद्योगों में बनाई जायें तथा रक्षा में भी संसार के सशक्त एवं सबसे बलवान देश बनने का प्रयास करें। ऐसा करने पर ही हम सुरक्षित एवं सुखी रह सकते हैं। इस दृष्टि से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी का स्वदेशी व आत्मनिर्भर देश बनने का मन्त्र व आह्वान एक प्रशंसनीय एवं सराहनीय कार्य हैं।
हमें देश में स्वदेशी उद्योगों का विकास कर अपनी आवश्यकता की प्रत्येक वस्तु को बनाना चाहिये तथा अन्न व खाद्यान्न के क्षेत्र में भी स्वावलम्बी बनना चाहिये। प्रधानमंत्री मोदी जी का नेतृत्व इस कार्य में एक आदर्श नेतृत्व का कार्य करेगा। स्वदेशी वस्तुओं के प्रयोग का देश में अभियान चलाया जाना चाहिये। हमारे देश में विदेशियों के हितैषी भी कम नहीं हैं जिन्हें अपने देश के सत्साहित्य तथा हितों में अधिक रुचि नहीं है। अनेक कारणों से वह विदेशियों के हितों के पक्षधर हैं। इस विडम्बना को दूर करने के लिये राष्ट्रवादियों को अपनी भूमिका को निभाना होगा और विदेशी षडयन्त्रों व उनके अन्धभक्तों को पराजित करना होगा। हमें देश को स्वदेशी के मन्त्र से जगाते रहना चाहिये। अपने परिवारों व मित्रों को स्वदेशी वस्तुओं का ही उपयोग करने की प्रेरणा करनी चाहिये। जो इसका पालन न करें उनके प्रति हमें अधिक प्रेम व सद्भाव दिखाने की आवश्यकता नहीं है। विदेशी वस्तुओं का उपयोग करने वाले लोग देश को कमजोर करने के साथ इसे हानि पहुंचाते हैं। आयात के कारण हमारा जो पैसा विदेशों में जाता है, उस धन से हम अपने देश के अल्पशिक्षितों व निर्धनों के कष्टों को दूर कर सकते हैं। यह तभी सम्भव है कि जब हम जागरुक बनेंगे और दूसरों को जागृत करने के अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन करेंगे।
वर्तमान समय में देश में देशविरोधी प्रवृत्तियां शीर्ष पर हैं। देशभक्त पत्रकारों व लेखकों को धमकियां दी जाती हैं। उनके विरुद्ध देश के विभिन्न क्षेत्रों में एफआईआर की जाती हैं तथा विदेशी भूमि से इनको मारने की धमकियां भी दी जा रही हैं। देश की केन्द्र सरकार को चाहिये कि कानून के जो प्रावधान अलगाववादियों, देशविरोधियों तथा विदेशियों के एजेण्टों को बल प्रदान करने वाले लोगों का संरक्षण करते हैं, उनकी समीक्षा कर उनमें सुधार किया जाये व आवश्यकता होने पर रद्द किया जाये। यदि ऐसा नहीं होगा तो इसकी हमें बहुत बड़ी कीमत चुकानी होगी। हमारे विदेशों में रहने वाले लोगों पर भी वहां के कानूनों के आधार पर मिथ्यादोषारोपण कर उन्हें फंसाया जा रहा है और इसके माध्यम से दूसरों को डराया जा रहा है। भारत सरकार इस पर ध्यान दे और उन देशों की सरकारों को आगाह करे। यदि वह हमारे देश के उचित हितों की रक्षा न करें तो उनसे यथायोग्य व्यवहार किया जाये। यही राम, कृष्ण, चाणक्य, विदुर आदि नीतिनिपुणों की नीति है। इसका अनुसरण करेंगे तो सफलता अवश्य मिलेगी और देशविरोधी आन्तरिक व बाह्य शक्तियों पर अंकुश लगेगा। हम आशा करते हैं कि यह बातें केन्द्र सरकार के संज्ञान में अवश्य होंगी और वह आने वाले समय में इस पर उचित कार्यवाही करेंगे।
भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने स्वदेशी का प्रयोग व आत्म-निर्भरता का जो मन्त्र दिया है वह स्वागत एवं प्रशंसा योग्य है। देश का प्रत्येक देशभक्त नागरिक उनके साथ है। यह उद्देश्य अवश्य ही पूर्ण होगा। सभी देशवासियों को इसके लिये तैयार हो जाना चाहिये। न्यूजनेशन टीवी चैनल के विख्यात पत्रकार श्री दीपक चौरसिया ने आज शपथ ली है कि वह अपने जीवन में स्वदेशी वस्तुओं का प्रयोग ही करेंगे और विदेशी वस्तुओं का प्रयोग नहीं करेंगे। श्री दीपक चौरसिया जी बधाई के पात्र हैं। सभी देशवासियों को श्री दीपक चौरसिया जी का अनुकरण करना चाहिये। श्री चौरसिया ने यह कार्य स्वामी रामदेव जी की प्रेरणा से किया है। स्वामी रामदेव जी ने उन्हें इसके लिये बधाई दी है। हम भी श्री दीपक चौरसिया एवं स्वामी रामदेव जी की प्रेरणा का अनुकरण करेंगे और सब देशवासियों को भी करना चाहिये। ओ३म् शम्।
–मनमोहन कुमार आर्य