राजनीति

पुनः मजदूरों का न हो पलायन

वर्तमान स्थिति को देखते हुए भारत एक नए मोड़ पर खड़ा दिखाई देता है। जहाँ उसे एक ओर इस महामारी से लड़ना है वहीं दूसरी ओर भारत की डगमगाती अर्थ व्यवस्था को सुधारने की जरूरत है। सभी प्रकार के कल कारखाने एक प्रकार से बंद की स्थिति में हैं। कारखानों को चलाने वाले मजदूर भारी संख्या में शहर को छोड़ कर अपने गांव लौट गए। इस कारण दो प्रकार की समस्या सामने आ गयी एक तो वापस लौट चुके मजदूरों को अपने गांव में ही कोई रोजगार देना व बन्द पडे कल कारखानों को पुनः संचालित करना। आजादी के बाद विकास की जो संकल्पना की गई थी, उसमें रोजगार के अवसरों के विकेंद्रीकरण का विचार प्रमुख था। उद्योग-धंधे केवल महानगरों तक सीमित न हों। उन्हें दूर-दराज के इलाकों में स्थापित किया जाए, ताकि उन इलाकों तक अच्छी सड़कें पहुंच सकें, शिक्षा की अच्छी सुविधा उपलब्ध हो सके, स्थानीय लोगों को रोजगार के लिए दूर-दूर शहरों में न भागना पड़े। मगर यह विचार पल्लवित नहीं हो सका। विकास की चकाचौंध महानगरों तक सिमटती गई, जहां रेल और हवाई सेवाओं का संजाल हो, शिक्षा और चिकित्सा की बेहतर सुविधाएं उपलब्ध हों। इसका नतीजा यह हुआ है कि गांवो से लोगों ने रोजगार की तलाश में शहरों की ओर पलायन किया और गांव सूने हो गए। अब इस कठिन समय मे आज पुनः गांव बस रहे हैं इस लिए अब एक नए मॉडल को केंद्रित करके ग्रामोत्थान की ओर बढ़ना चाहिए। सरकार द्वारा जारी योजनाओं को ठीक प्रकार से गांवों में लागू हो यह बड़ी जिम्मेदारी की बात है ध्यान में तो यह आता है कि सरकार ग्रामों के लिए कई अच्छी योजनाओं की पहल करती है किंतु यह योजनाएं कुछ लोगों के पास ही सिमट कर रह जाती हैं योजनाओं में पारदर्शिता दूर तक दिखाई नही देती और मजदूरों किसानों को इसका लाभ सीधे नही मिल पा रहा है इस ओर भी ठोस नीति की आवश्यकता है। जिससे पुनः मजदूरों का पलायन न हो।
स्वतंत्र भारत की प्रथम जनगणना 1951 में ग्रामीण एवं शहरी आबादी का अनुपात 83 प्रतिशत एवं 17 प्रतिशत था। 50 वर्ष बाद 2001 की जनगणना में ग्रामीण एवं शहरी जनसंख्या का प्रतिशत 74 एवं 26 प्रतिशत हो गया। इन आंकड़ों के देखने पर स्पष्ट परिलक्षित होता है कि भारतीय ग्रामीण लोगों का शहरों की ओर पलायन तेजी से बढ़ रहा है।
गांवों से शहरों की ओर पलायन का सिलसिला कोई नया मसला नहीं है। गांवों में कृषि भूमि के लगातार कम होते जाने, आबादी बढ़ने और प्राकृतिक आपदाओं के चलते रोजी-रोटी की तलाश में ग्रामीणों को शहरों-कस्बों की ओर मुंह करना पड़ा। गांवों में बुनियादी सुविधाओं की कमी भी पलायन का एक दूसरा बड़ा कारण है। गांवों में रोजगार और शिक्षा के साथ-साथ बिजली, आवास, सड़क, संचार, स्वच्छता जैसी बुनियादी सुविधाएं शहरों की तुलना में बेहद कम है। इन बुनियादी कमियों के साथ-साथ गांवों में भेदभावपूर्ण सामाजिक व्यवस्था के चलते शोषण और उत्पीड़न से तंग आकर भी बहुत से लोग शहरों का रुख कर लेते हैं। इन सब प्रकार की कुरीतियों पर उचित ढंग से कार्य किया जाए और एक सुव्यवस्थित ढांचे का निर्माण हो। स्वावलंबन, आत्मनिर्भरता निर्मित हो यही हमारा उद्देश्य होना चाहिए।

*बाल भास्कर मिश्र

पता- बाल भाष्कर मिश्र "भारत" ग्राम व पोस्ट- कल्यानमल , जिला - हरदोई पिन- 241304 मो. 7860455047