कविता

जीवन-साथी

पिता का बीज और माँ की गर्भ, मिलते हैं
इस दुनिया में रंग बिरंगे, कई फूल खिलते हैं
बड़े प्यार से हर माँ, अपना रुधिर बच्चे को देती
बच्चे के सुख कि खातिर, कई कष्ट सह लेती

पिता खुशी से बनाता, भविष्य कि योजनाएँ
कैसे दूर होंगी, पग पर आने वाली विपदाएँ
बच्चे के लिए जीता, लुटाकर अपना चैन
इसी धुन में रहता है, हरेक पिता दिन-रैन

नौ माह मात गर्भ में, बच्चा करता है क्रीडा
जन्म देने को धरती पर, सहती माँ प्रसव पीड़ा
देखकर मुख नवजात का, खिलता है चैन का फूल
वक्ष से अपने लगाकर, दर्द अपना जाती माँ भूल

मुख देख-देख हर्षाती माँ, फूले नहीं समाती
दुग्ध धार से पोषित करती, लगा अपनी छाती
छाती से फूट-फूट कर, बहती ममता गंगा बन
इस अमृत का पान करके, शिशु पाता है जीवन

हँसते रोते कटता बचपन, रखता पैर लड़कपन में
दुनिया का अब रंग चढ़े, धीरे धीरे इस जीवन में
सीख रहा है चालाकी, अब बालक भोला भाला
यही सत्य है जीवन का, श्वेत पे लगता धब्बा काला

जीवन की इस नैया में, करता सैर सिंधु की
लहरें ही देती हैं रास्ता, रोके रास्ता लहरें ही
सहज होता है कभी, सफर कभी होता कठिन
तेज़ धूप गुर्राती कभी, कभी होते बादल सघन

किशोर मन चंचल होता, चाहे साथ किसी का
सुंदरता इसको आकर्षित करती, रहे आहें भरता
शारीरिक परिवर्तन झेलता, बढ़े जवानी की ओर
शरमाता- इतराता अकेले, नाचे जैसे सावन में मोर

कोई चेहरा खास है लगता, उस ओर खिंचा जाए
स्वपन अनोखे देखे पागल, मन ही मन मुस्काए
हवा में जैसे उड़ने लगता, सारी दुनिया जाता भूल
मित्रों का संग भाता इसको, करता बातें ऊल जलूल

कुछ भी खोना नहीं चाहता, बस ये पाना चाहे
कहाँ जाना है, नहीं जानता, बस ये जाना चाहे
दिन में कई-कई बार दर्पण में, चेहरा अपना देखे
बंद हों या खुले हों नयन, परियों का सपना देखे

नहीं लगता मन पढ़ने में, पढ़ना- लिखना मजबूरी
बड़े कहते, कुछ बनो जीवन में, कुछ बनना है जरूरी
बात समझ कुछ-कुछ आती, पालन करना होता है
चाहो न चाहो पर सबको, पढ़ना- लिखना होता है

हृष्ट-पुष्ट देह की कामना, मन में प्रबल हो जाती
पर ये आयु बड़ी विचित्र, वैसी नहीं बन पाती
गला हो जाता भारी-भारी, मुछों के आते हैं बाल
आकुल-व्याकुल रहता है, उठते मन में कई सवाल

किशोरावस्था पार हुई, आ गयी अब जवानी
दुनिया का दस्तूर समझकर, बनेगी एक कहानी
चिंता होती भविष्य की, काम -धंधा करना होगा
पढ़ लिखकर पाए कागज, उनका मोल भरना होगा

बच्चों पर रहती टिकी हुई, माता-पिता की आशाएँ
पैरों पर अपने खडे होकर, अपना जीवन बिताएँ
उम्र विवाह की भी हो आई, ढूंढ लेंगे कोई बाला
गलत रास्ते ना पड जाए, आज़ादी पे लगाओ ताला

पा ली अच्छी नौकरी, तो चिंता हो गयी दूर
विवाह अब करवा लेंगे, परिवार बने भरपूर
हाँ, विवाह तो करना ही है, गृहस्थी है बसानी
सुंदर सुशील पत्नी के संग, दुनिया नई सजानी

जवानी के इस आकाश में, उडता है दिन-रात
भीगा- भीगा रहता है, बिन बादल होती बरसात
जोश से रहता भरा हुआ, सपने बुनता नए-नए
महत्वकांक्षा की धरती पर, बीज डालता नए-नए

सफलता-असफलता से जूझते, कटता है जीवन
मौसम कई बदलते हैं, आते जीवन में कई सावन
ठोकर खाता फिर संभलता, चलता अपनी राह
अनुभव की भट्ठी में जलता, भरता नहीं ये आह

अर्धांगिनी के संग मुस्काता, लुटाता उसपे जवानी
मन और देह की संतुष्टि पाता, जो चाही उसने पानी
एक नई रचना होती जगत में, जब मिलते हैं नर-नारी
गृहस्थ का सुख पूरा होता, जब होती संतान प्यारी

बड़ा कठिन है, गर्भ पालना, हाँ कष्ट बहुत होता है
नियति की ठोकर लगती कभी, इंसान बहुत रोता है
बहुत कठिन होता है जीवन, गर्भपात यदि हो जाये
गर्भ में पलता-पलता बच्चा, अचानक जब खो जाये

ऐसे दुख भरे क्षण भगवान, किसी को ना दिया करे
दुख जो दे तो, सहने को, कठोर मानव का हिया करे
कैसे सहती है वो पीड़ा, प्रसव-पीड़ा से भी गंभीर
ममता फूट-फूट कर रोती, रोता नारी का पूरा शरीर

बेरंग हो जाती है दुनिया, रंग कोई भाता नहीं
अपना अंश खोने का दृश्य, दृष्टि से जाता नहीं
कठिनाई होती नारी को, इस पीड़ा से उभरने में
बहुत समय लगता है , गहरे घावों को भरने में

देह क्षीण हो जाती है, मासिकधर्म का चक्र टूटता
मन काबू में रहता नहीं, खुद से पागल रहे जूझता
दिलासा मिलता अपनों का, ताने भी मिलते हैं
क्या- क्या रंग है दुनिया के, सभी पता चलते हैं

पति-पत्नी का रिश्ता, बहुत गहरा और पक्का हो
सह लेते हैं मिलकर, कितना ही ज़ोर का धक्का हो
इक दूजे का दर्द समझते, मन की डोर बंधी होती है
पत्नी का दर्द पति समझे, पति के दर्द में पत्नी रोती है

नोक-झोंक होती है लेकिन प्यार भी गहरा होता है
दोनों का मन और नहीं इक दूजे पर ठहरा होता है
सुख- दुख के साथी पक्के, हँसते- रोते साथ साथ
तेज हो चाहे तूफान, छोड़े ना इक- दूजे का हाथ

मन से, देह से, होकर एक, बनते हैं जीवनसाथी
दोनों साथ जलते दुख में, जैसे दिया और बाती
बुरा समय हो जीवन में, अच्छा भी समय आएगा
ढल जाएगी रात घनेरी, उषा गीत फिर गाएगा

प्यार- प्यार मे कट जाएंगे, ये जवानी, ये जीवन
गृहस्थ का धर्म निभाकर, पवित्र रखकर दामन
सरल है पग से डिगना, कठिन है अडिग रहना
माया की इस अग्नि में, पड़ता आप ही दहना

काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार
इनसे रहित नहीं हो सकता, ये भौतिक संसार
वश में इनको रखकर, करना है इनका प्रयोग
इनके वश में न हो जाना, लगते भयंकर रोग

परनारी पर मोहित होकर, उसके पीछे भागना
ये ऐसा मोनोरोग है जैसे स्वयं को गोली दागना
काम भ्रमित करता है लेकिन इसको भ्रममें डालो
पत्नी के प्रति निष्ठा रखकर, स्वयं ही इसे संभालो

देह के मिथ्या सुख की खातिर, गलत राह ना चल पड़ना
क्षणिक संतुष्टि हेतू भाई, कुल जीवन कलंकित न करना
पत्नी को विश्वास में रखना, काम वही सदा आएगी
वैसे तो दुनिया की चकचौंध, सदा तुम्हें भरमाएगी

अपना घर छोडकर आई, ससुराल को अपना घर बनाया
भूल-भाल अपने सुख सारे, तुम्हारा घर उसने सजाया
पति का राह से डिग जाना, सबसे बड़ा दुख पत्नी का
कुछ भी सह सकती है लेकिन, सह नहीं सकती ये पीड़ा

कैसा भी समय जीवन मे आए, साथ हमेशा निभाएगी
पत्नी अपनी पर आए तो, मौत के मुह से वापिस लाएगी
सबसे प्यारा साथी, अपना जीवनसाथी, रखना ये याद
इसके बिन जीवन ऐसा, ज्यों नमक रहित दाल बेस्वाद

अर्जुन सिंह नेगी

नाम : अर्जुन सिंह नेगी पिता का नाम – श्री प्रताप सिंह नेगी जन्म तिथि : 25 मार्च 1987 शिक्षा : बी.ए., डिप्लोमा (सिविल इंजीनियरिंग), ग्रामीण विकास मे स्नातकोत्तर डिप्लोमा। पेशा : एसजेवीएन लिमिटेड (भारत सरकार एवं हिमाचल प्रदेश सरकार का संयुक्त उपक्रम) में सहायक प्रबन्धक के पद पर कार्यरत l लेखन की शुरुआत : सितम्बर, 2007 से (हिमप्रस्थ में प्रथम कविता प्रकाशित) l प्रकाशन का विवरण (समाचार पत्र व पत्रिकाएँ): दिव्य हिमाचल (समाचार पत्र), फोकस हिमाचल साप्ताहिक (मंडी,हि.प्र.), हिमाचल दस्तक (समाचार पत्र ), गिरिराज साप्ताहिक(शिमला), हिमप्रस्थ(शिमला), प्रगतिशील साहित्य (दिल्ली), एक नज़र (दिल्ली), एसजेवीएन(शिमला) की गृह राजभाषा पत्रिका “हिम शक्ति” जय विजय (दिल्ली), ककसाड, सुसंभाव्य, सृजन सरिता व स्थानीय पत्र- पत्रिकाओ मे समय- समय पर प्रकाशन, 5 साँझा काव्य संग्रह प्रकशित, वर्ष 2019 में अंतिका प्रकाशन दिल्ली से कविता संग्रह "मुझे उड़ना है" प्रकाशितl विधाएँ : कविता , लघुकथा , आलेख आदि प्रसारण : कवि सम्मेलनों में भागीदारी l स्थायी पता : गाँव व पत्रालय –नारायण निवास, कटगाँव तहसील – निचार, जिला – किन्नौर (हिमाचल प्रदेश) पिन – 172118 वर्तमान पता : निगमित सतर्कता विभाग , एसजेवीएन लिमिटेड, शक्ति सदन, शनान, शिमला , जिला – शिमला (हिमाचल प्रदेश) -171006 मोबाइल – 09418033874 ई - मेल :[email protected]