लघुकथा

आत्मनिर्भर

आत्मनिर्भर
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 देश के लाखों मजदूरों की तरह सुनील भी लॉक डाउन की वजह से अपनी दिहाड़ी गंवा चुका एक मजदूर था ।
श्रमिकों के लिये चलाये जानेवाले ट्रेन में टिकट पाने की आस में वह भोर में ही शहर के एक नामी एजेंट की दुकान पर पहुँच गया था जो उसे टिकट निकालकर दे सकता था लेकिन अंततः उसे निराशा ही हाथ लगी ।
पड़ोस के कमरे से टीवी पर प्रधानमंत्री जी की आवाज उसने सुनी जो कह रहे थे ” देश के विकास व समृद्धि के लिए अब हमें आत्मनिर्भर बनना होगा …..! ” प्रधानमंत्री जी का भाषण जारी था लेकिन सुनील के कानों में तो जैसे वह एक ही वाक्य गूँज रहा था ।
रात का भोजन करके सुनील अपनी पत्नी के साथ  तीन साल की बेटी श्रेया को लेकर पैदल ही अपने गाँव की तरफ चल पड़ा । उसके कानों में अब एक ही शब्द बार बार गूँज रहे थे ..आत्मनिर्भर …! आत्मनिर्भर ..!

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।