सामाजिक

डिजिटल मिडिया के लिए विश्वसनीयता बड़ी चुनौती

कोराना के कारण हुए देशव्यापी लॉकडाउन से अन्य व्यवसायों की तरह प्रिंट मीडिया भी इन दिनों संकट से जूझ रहा है। तमाम अखबारों और पत्रिकाओं का सर्कुलेशन प्रभावित हुआ है, और कई पत्रिकाओं को तो अपने प्रिंट एडिशन फिलहाल बंद करने पड़े हैं, या डिजिटल रूप में लाने पड़े है। डिजिटल प्लेटफार्म पर दर्शकों-पाठकों की संख्या बढ़ी है। डिजिटल प्लेटफार्म को लोग पसंद भी कर रहे है, क्योंकि इसका दायरा व्यापक है। हर समय इसकी पहुंच आम लोगों तक है। जानकारी, मनोरंजन, समाचार सभी लिहाज से इसकी पाठक संख्या बढ़ना स्वभाविक है।

इससे मीडिया संस्थानों को यह समझने का अवसर मिला कि अखबार को डिजिटल फॉर्म में उपलब्ध कराया जाना जरुरी है। यह सब मजबूरी में ही सही पर उनको नया प्रयोग करने का एक मौका मिला है। वर्तमान हालातों को देखते हुए अपने पाठकों से जुड़े रहने के लिए तमाम मीडिया संस्थानों ने डिजिटल फार्म को और ज्यादा बढ़ावा देना शुरू कर दिया है, इसे एक नई चुनौती के रूप में स्वीकार भी किया है।

लॉकडाउन में अखबारों के लिए चुनौती बढ़ गई है, उनका क्षेत्र कम हो गया है। विज्ञापनों में कमी आई है। प्रिंट एडिशन निकालना बच्चों का खेल नहीं है, काफी खर्चे वाला काम है। प्रिंट हो रहे सभी अखबारों और पत्रिकाओं के लिए लॉकडाउन शुरू होने के बाद से ही ये चुनौती शुरु हो गई कि उन्हें व्यापक तौर पर लोगों तक उपलब्ध कैसे कराया जाए और लोगों को यह बताया कैसे जाए कि हमारा जो अखबार या पत्रिका अभी तक कागज पर आप पढ़ रहे है वह अब डिजिटल फॉर्म में पढ़ सकते हैं। दूसरी तरफ एक समस्या यह थी कि कुछ लोग डिजिटल पढ़ने में असहज महसूस करते हैं। लिहाजा इसे मात देने के लिए टेक्नोलॉजी की मदद ली गई। पीडीएफ के रूप में सोशल मिडिया के माध्यम से लोगों तक अखबार पहुंचाया जा रहा है। पाठकों की भी मजबूरी है क्योंकि जैसी अखबार पढ़ने की उनकी आदत रही वैसा अखबार ही नहीं मिल रहा है, लेकिन उनके पास कोई चारा ही नहीं बचा, या तो वे पीडीएफ डाउनलोड करके पढ़ें या फिर साइट पर जाकर ई-पेपर पढ़ें।

मौजूदा हालात में मिडिया संस्थानों को अखबार की तरह अपने डिजिटल प्लेटफार्म को अपने पाठको के बीच विश्वसनीय बनाना पड़ेगा, क्योंकि डिजिटल प्लेटफार्म के सामने जो सबसे बड़ी समस्या है वह विश्वसनीयता की। अगर कोई बड़ी और प्रभावशाली खबर डिजिटल प्लेटफार्म पर आ जाए तो पाठकों का एक बड़ा वर्ग उस पर भरोसा नहीं करता है। नोटिस नहीं करता या फिर वह खबर चर्चा में नहीं आती है और इसका मुख्य कारण यही है कि डिजिटल प्लेटफार्म अपने आपको उतना विश्वसनीय नहीं बना पाया है। डिजिटल मीडिया को यह जल्द से जल्द करना होगा और यदि वह अपनी विश्वसनीयता नहीं बनाएंगे, तो प्रिंट मिडिया के सिकुड़ जाने के बावजूद उन्हें उस तरह की स्वीकार्यता नहीं मिल पाएगी, जिस तरह अखबारों की है। लिहाजा ज्यादातर लोग दूसरी तरफ जाने लगेंगे। कई लोगो को लगता है कि सोशल मीडिया पर आने वाली जानकारी विश्वसनीय है। डालने वाला हमारा परिचित है, या यह विश्वसनीय है, जो कि गलत खबर नहीं दे सकता, तो उस ओर भी लोग जाने लगे है।

आजकल सूचनाएं स्थानीय नहीं रह गईं हैं। लोकल जानकारी आजकल इंटरनेशनल स्तर तक पहुंच रहीं हैं। ऐसे में यदि स्थानीय जानकारी जिन्हें चाहिए, वे उस स्थानीय विश्वसनीय माध्यम पर जाने लग जाएंगे। हालांकि वो स्थित सही नहीं होगी, क्यों किसी भी स्थिती में वह माध्यम निष्पक्ष नहीं हो सकता है, वह जनपक्षधर नहीं हो सकता है, तो यह चैलेंज रहेगा सोशल मिडिया के साथ चल रहे डिजिटल मिडिया को। डिजिटल मीडिया को यह चाहिए कि वह विश्वसनीयता को मजबूत करे, तो ही उसके लिए भविष्य में बहुत फायदेमंद रहेगा।

डिजिटल मिडिया का अपने पास सबसे बड़ा जो सकारात्मक पहलु है वह है उसकी वैश्विक पहुंच का और यह फायदा हमेशा उसके पास रहेगा। वैसे यह समय डिजिटल के लिए यह एक चुनौती भी है और एक अवसर भी है यानी आप वरदान भी कह सकते हैं और अभिशाप भी। यदि कोई गलत जानकारी देता हैं, तो उसकी विश्वसनीयता नहीं रहेगी। उसकी अविश्वसनीयता वैश्विक स्तर पर जानी जाएगी, पहचानी जाएगी। ये अभिशाप है। और वरदान यह है कि यदि विश्वसनीय जानकारी देते हैं तो वह वैश्विक स्तर पर पहचाने जाएंगे।

आज तो लोगो की मजबूरी है कि उनके पास अखबार नहीं आ रहे हैं, जिसकी वजह से सूचनाओं के लिए लोग डिजिटल प्लेटफार्म पर जा रहे है। लेकिन यदि एक हफ्ते, दस या पंद्रह दिनों बाद डिजिटल प्लेटफार्म यदी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा, तो फिर लोग अखबार ही मंगवाएंगे और डिजिटल प्लेटफार्म को अविश्वसनीय करार देने लगेंगे। कुछ साल पहले तक ऐसा होता था कि यदि आज किसी ने अखबार नहीं पढ़ा, तो लगता था कि आज के दिन में मजा नहीं आया, लेकिन अब लोग कहते हैं कि ऐसा नहीं लगता, क्योंकि एक तो सूचना का स्रोत बढ़ा है, सूचना का पड़ाव बढ़ा है और सूचना का फैलाव हुआ है। अभी की जो खबर आई वो हम जान गए, लेकिन कल वही खबर हमको अखबार में पढ़ने को मिलेगी, लिहाजा कल हमने अखबार नहीं पढ़ा तो भी हमें नहीं लगेगा कि हमसे कुछ छुट गया है। तो वही चीज है कि अखबार यदि अभी सिमटेगा और उसका लाभ डिजिटल को मिलेगा, तो डिजिटल प्लेटफार्म को उस लाभ को बरकरार रखने के लिए अपनी जिम्मेदारी को और गंभीरता से लेना होगा और वो जिम्मेदारी विश्वसनीयता बनाने की है। यानी लोगों के मतलब की खबर देनी होगी, सही खबर देनी होगी। तभी डिजिटल प्लेटफार्म पर भरोसा कायम रहेगा और पाठक और दर्शक टिके रहेंगे।

— संदीप सृजन

संदीप सृजन

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