हां साहब! मैं मजदूर हूँ…
आज हजारों किलोमीटर पैदल चलने को मजबूर हूँ,
हां साहब! मैं मजदूर हूँ, हां साहब! मैं मजदूर हूँ।
दूसरों के इशारों पर काम करने वाला हूँ,
काम पर पहुंचने में कभी देर ना हो जाए,
इस बात का ध्यान पल-पल रखने वाला हूँ,
परिवार का पेट भरने खातिर घर से मैं दूर हूँ,
हां साहब! मैं मजदूर हूँ, हां साहब! मैं मजदूर हूँ।
औरों की तरह मैं भी ईश्वर का बनाया रचना हूँ,
धरा पर लोगो का मान बढा, बना मैं रचनाकार भी हूँ,
लोग मुझे समझते पीछे, मुश्किलों में मैं ही अग्र भी हूँ,
कोरोना से काम छीना, अतः घर पहुँचु इस सुरूर में हूँ,
हां साहब! मैं मजदूर हूँ, हां साहब! मैं मजदूर हूँ।
पैदल चलते-चलते मेरे पाँव में पड़ गए छाले है,
भूख लगी हैं मुझे, पर रोटी के पड़ गए लाले हैं,
जेठ की ये दुपहरी हैं, न कोई संगी न कोई साथी हैं,
कल तक जहाँ-जहाँ काम किये, वहां का मैं नूर हूँ,
हां साहब! मैं मजदूर हूँ, हां साहब! मैं मजदूर हूँ।
खुद का पसीना बहा दूसरे का नाम बढ़ाने वाला हूँ,
ईमानदारी और सादगी का जीवन सदा जीने वाला हूँ,
कभी भी किसी के आगे हाथ नहीं फैलाने वाला हूँ,
हैरान हूँ,परेशान हूँ, कभी-कभी मरने को लाचार हूँ,
हां साहब! मैं मजदूर हूँ, हां साहब! मैं मजदूर हूँ।
आज हजारों किलोमीटर पैदल चलने को मजबूर हुँ,
हां साहब! मैं मजदूर हूँ, हां साहब! मैं मजदूर हूँ।
— राजीव नंदन मिश्र (नन्हें)