टिड्डी- एक रोचक कीड़ा
टिड्डी- हरा रंग का एक कीड़ा। मासूम सा दिखने वाला एक कीड़ा। मैं प्रकृति प्रेमी हूँ अतः मुझे हर प्राकृतिक वस्तु जीव जंतु बहुत प्यारे लगते हैं। इसके बावजूद एक सुबह मैं एक टिड्डी को भगाने दौड़ा। कृषक पुत्र हूँ अतः मुझे अच्छी तरह से मालूम है कि मासूम सा दिखने वाला यह कीड़ा बहुत भयानक चरित्र वाला है। पर तभी मेरे एक मित्र जो कि काफी उदारवादी हैं ने मुझे देख लिए। लगे मेरी भर्त्सना करने। कहने लगे, ‘वैसे तो आप बड़े प्रकृति प्रेमी बनते हैं पर यहाँ आप इस बेचारे टिड्डी पर अत्याचार कर रहे हैं।’ मैंने समझाने का क्षीण प्रयास किया, ‘मित्र! बात प्रकृति प्रेमी होने की नहीं है! बात है आसन्नप्राय संकट की!! यह टिड्डी जब एक समूह में बदल जाएगा तो यह मासूम नहीं रहेगा, यह बहुत भयानक हो जाएगा। पूरी की पूरी फसल चौपट कर देगा।’ पर चूँकि मित्र को इसकी कोई जानकारी नहीं थी सो उन्होंने हँसते हुए कहा कि यह छोटा सा कीड़ा कहाँ पूरी फसल चौपट कर सकता है?! उन्हें जिस बात का अनुभव न हो वह समझाना मुश्किल है। चीनी मीठी लगती है यह बात आप उसे नहीं समझा सकते जिसने चीनी चखा ही न हो। मिठास शब्द के मीठेपन को वही अनुभव कर सकता है जिसने मीठा का स्वाद चखा हो और ठीक ऐसा ही कड़वा पर भी लागू है। कहने का तात्पर्य यह है कि भाव को संप्रेषित करने की क्षमता शब्दों में संभव नहीं यदि पाठक ने कभी वह भाव स्वयं अनुभव न किया हो। खैर! मित्र को नहीं समझना था सो वे नहीं समझे कि मासूम सा दिखने वाला टिड्डी भयानक कैसे हो सकता है।
इस घटना को काफी दिन बीत गया। फिर कल शाम अचानक मित्र घर आए और कहने लगे कि भाईसाहब आप सही थे उस दिन। ये टिड्डे तो बहुत खतरनाक हैं। पूरी फसल तबाह कर सकते हैं। मेरी बात का प्रभाव पड़ते देख मैंने पुनः जोड़ा कि मित्र एक और बात याद रखिए कि एक बार इनकी संख्या बढ़ जाने पर आपके पास कोई भी प्रभावशाली उपाय नहीं बचता जिससे इनको नियंत्रित किया जा सके। ये प्रकृति द्वारा ही नियंत्रित हो सकते हैं तब। अतः सबसे प्रभावशाली उपाय यही है कि समय रहते इनकी संख्या को नियंत्रित किया जाए। मित्र को बात समझ आ गई। उन्होंने चाय की चुस्की लेते हुए कहा, ‘अब मैं समझा कि आप प्रकृति प्रेमी होने के बावजूद उस दिन टिड्डे के पीछे हाथ धोकर क्यों पड़े हुए थे।’ हम दोनों चाय की चुस्कियों के साथ टिड्डियों के उत्पात का समाचार देखने में मशगूल हो गए।