कविता

इंसान

इंसान जब इस धरती पर आता है
कितने सारे वो काम कर जाता है ।
कभी लोगों का प्राण बन जाता है
कभी प्रेम से संसार जीत जाता है ।
नन्हें नन्हें पैरों से चलकर आता है
बड़े बड़े सपने वो देकर जाता है ।
कितनी ही आशाएँ लेकर आता है
कितने ही वायदे वो कर जाता है ।
आशाएँ हकीक़त का रूप जब लेती है
वायदे पूरे होते दिखाई देने  लगते हैं ।
चलते चलते एक दिन वो वक्त भी आता है
जब सबकी आंखों में आंसू दे जाता है ।
जीवन मरण का चक्र चलता रहता है
न कभी रूका है न कभी रूकेगा।

डॉ. शीला चतुर्वेदी 'शील'

प्रधानाध्यापक आदर्श प्राथमिक विद्यालय, बैरौना, देवरिया एक शिक्षक के रूप में कार्य करते हुए मैं सामाजिक व कई शैक्षिक संगठनों से भी जुड़ी हुई हूं एवं इसके साथ ही एक कुशल गृहणी भी हूं। वर्तमान में (SRG) राज्य संसाधन समूह के पद पर कार्यरत हूँ । शैक्षिक योग्यता- M.Sc., M.Phil(Physics), B.Ed, Ph.D. साहित्य में भी रुचि रखती हूँ।