सारा आकाश
कहाँ से करें शुरू, कहाँ पर करें खत्म
कैसे मैं यह जानू, करूँ क्या मैं जतन।
सूरज को थामे, चंदा को पाले
कितने ही तारों को अपने पट में डाले।
मानव ने बनाए जो उड़ायमान यंत्र
रखते हो उनके लिए भी अपना मन।
देते हो मार्ग अपने सीने को भेद कर
इनके भी वास्ते गुजरने के रास्ते ।
रात के अंधेरे में खोया यह मेरा मन
बुनता है जाने कितने सपने यह मन।
लगता है कि यह सपने आते हैं चुपके से
तेरे ही व्योम के किसी कोने से छुपके
जाने तू ही सारे तेरे भेद यह गहरे
हर पल है हम पर तो तेरे ही पहरे।