प्रकृति प्यारी
बड़ होता बड़ा, पीपल देती शीतल छाया
नीम करता हवा शुद्ध आँवला औषधियुक्त।
बबूल दंत की औषधि वेर खजूर मधूर
तार का बुलंद हौसला छूती गगन ।।
आम, लीची, कटहल तो देते वृद्धि
देश विदेश सैर कर लाते है समृद्धि।।
औषधियों से भरा हरे भरे घनघोर वन
इनके छाल,पत्ते जड़ और फल संवारे तन।
इनसे सुरभित है जीवन हमारा
इनका सदा ख्याल रखना धर्म तुम्हारा।
इनके वजूद पर टिका हुआ है
मानव अस्तित्व तुम्हारा।
कंचन काया की है यह वरदान
पेड़ पौधे रहे भरे घनघोर समान।
मानव की दानवता से कटते वृक्ष
छोड़ो दानवता और लगाओ वृक्ष।
हिमखंड की पिघलने की रफ्तार
संकट के बादल प्रकृति का वार।
असमय वारिस बदलते मौसम
सब तो है प्रकृति का प्रकोप।
इन सबसे बचने का तो एक उपाय
पेड़ लगाओ साफ रखो घर द्वार।।
धरती कहती हमसे चीख चीख कर
रोको रासायनिक प्रयोग ।
लुप्त हो जाऊँ मै भी ये अचरज नही
अगर ऐसे ही होते रहे मुझपर प्रयोग।।
धुआँ धुआँ सा गहरा लगता क्यूँ है?
प्रदूषण का पहरा इतना गहरा क्यूँ है?
फटे हाल सा हवा पानी चिथरा चिथरा
दम घुँटता सा शहर दर शहर विखरा विखरा।
ऐसे तो पूर्वजो ने विरासत दी तो न थी
बना डाला कैसा संभालने की तरकीब न थी।
— आशुतोष