शायद वह मानव था…..!
धड़ाम…..
जोर का धमाका हुआ और फिर सब शांत। जिव्हा सहित गर्भवती हस्तिनी का संपूर्ण जबड़ा बम के धमाके के साथ क्षतिग्रस्त हो गया था। दर्द से बिलबिलाती उसकी चिंघाड़ जिव्हारहित गले में ही घुटकर रह गई। टपकती रक्त बूँद से सड़क पर रेखा खींचती वह सीधे नदी की ओर भागी। नदी मध्य जल में अपना विक्षत मुख डुबाने से उसे कुछ आराम मिला।
तभी गर्भस्थ शिशु ने पूछा, ‘माँ! आज से पहले भी कई बार अनानास खाया था तुमने, पर ऐसा तो कभी नहीं हुआ! अनानास तो कभी नहीं फटा मुख में!!’
‘आज से पहले हमने वृक्ष, जंगल से अपना भोजन माँगा था मेरे बच्चे। इस बार जिससे भोजन लिया शायद वह मानव था…!’ हस्तिनी ने डूबती साँसों के साथ उत्तर दिया।
स्वरचित-
अनंत पुरोहित ‘अनंत’