चेक का चक्कर
चेक का चक्कर
आलोक अपनी रेडी मेड कपड़ों की खुदरा दुकान में बिक्री हेतु अलग – अलग थोक विक्रेताओं से माल मंगवाता। रुपयों की वसूली के लिए हर महीने आने वाले व्यापारियों को भुगतान नगद में करता। आलोक को हर महीने रुपयों की व्यवस्था करने में दिक्कत होती देख, शुभचिंतक होने के नाते उसे समझाते हुए कहा, “ मेरी राय मानो तो बैंक में ख़ाता खोल कर उनसे चेक बुक ले लो। रुपयों की परेशानी हो तो उस दिन आने वाले व्यापारी को अगली तारीख़ का चेक दिया करो, इससे तुम्हारी मुश्किल आसान होगी। “ आलोक को मेरा सुझाव पसंद आया। बार – बार मेरा आभार माना।
हर महीने की तरह मैं आलोक के दुकान पर पहुंचा। इधर – उधर की बातें की। चाय पी। मैंने उनसे ओर्डर और पेमेंट मांगा। उसने तुरंत ओर्डर लिखवाया। बाद में चेक थमाया, जोकि पहले से ही लिखकर तैयार रखा था। चेक को गौर से देखने के बाद, मैंने उसे अपनी बैग में डाला। मुस्कुराकर आलोक से कहा, “ भाई वाह! मेरा बताया नुस्खा सबसे पहले मुझी पर आजमा डाला। “ मेरी बात सुनकर वे झेंप गए।
– अशोक वाधवाणी,