षड़यंत्रों के चक्रवात में लाँघ गई सीता रेखा
षड़यंत्रों के चक्रवात में
लाँघ गई सीता रेखा
छुपे महात्मा की भूषा में
पाखंडी हमने देखा
विपदा की इस विकट घड़ी में
रोग शोक चहुँदिग फैला
पापी रावण के मन में फिर
सोच एक उपजा मैला
श्रमिक बंधु में भय संचारण
पापी को करते देखा
षड़यंत्रों के चक्रवात में
लाँघ गई सीता रेखा
त्रस्त हुए थे त्रेता में भी
काल अभी है कलि वाला
फिर कैसे कह पाऊँगा मैं
सत्य पहनता जय माला
कुटिल बुद्धि ने फेंका पाशा
सत्य पुनः घुटना टेका
षड़यंत्रों के चक्रवात में
लाँघ गई सीता रेखा
विकट शत्रु कोरोना जैसा
इसका रूप नहीं दिखता
इससे भी है अधिक भयानक
वह जो कुटिल कथा लिखता
छुपे महात्मा की भूषा में
पाखंडी हमने देखा
षड़यंत्रों के चक्रवात में
लाँघ गई सीता रेखा
अनंत पुरोहित ‘अनंत’