अनसुलझे प्रश्नों में उलझकर,
इसकी उसकी जगह खड़े होकर,
सोचना बड़ा ही अच्छा है ।
शायद! हृदय भी तुम्हारा,
बहुत अच्छा है ।
लेकिन अपने ही आप में,
अपना विश्वास ढूंढ लेना,
सबसे अच्छा है।
अनसुलझे रिश्तों में उलझकर,
रेशम से धागे सुलझा लेना,
बड़ा ही अच्छा है।
शायद! इरादा भी तुम्हारा,
बड़ा ही पक्का है।
किन्तु आत्म चेतना विकसित कर,
नैतिकता और औचित्य को पा लेना,
सबसे अच्छा है।
— ज्योति अग्निहोत्री ‘नित्या’