कविता

व्याकरण- व्यथा

प्रत्याहार संज्ञा जब तक सीखा, तब तक इत्संज्ञा मैं भूल गया।
हलन्त्यम् मुझसे दूर खडा, व्याकरण ने खूब शूल दिया।

मैं ह्रस्व दीर्घ न सीखा, पर उदात्त अनुदात्त पढ़ता था।
रकार परेशान वर्ण, कभी नीचे कभी उपर चढ़ता था।

शिवसूत्र न समझा, फिर क्या सवर्ण संज्ञा वर्णन लायक थी ।
मुझे लगता जैसे पूरी सिद्धान्तकौमुदी ही पीडा दायक थी ।

अनुनासिक अननुनासिक अणुदित्, आजतक नही जान पाया हूँ।
मैं कुछ सूत्र तो अजाद्यातष्टाप् वाली बकरी सा पत्ते समझकर खाया हूँ।

मेरा हलो$नन्तरा संयोग सा संयोग, गुरु जी के डण्डे से होता था।
उस डण्डे का संयोगान्त लोप, केवल सण्डे को होता था।

धन पद सब मिल पाये इसलिए सुप्तिङन्तं पदम् पढता रहता था।
मैं उदयन स्व वासवदत्ता की दूरी, अदर्शनं लोप समझकर सहता था।

मेरी डर के मारे, न गुरु जी से सन्निकर्ष संहिता होती थी।
अब मुझको देखकर सिद्धान्त कौमुदी भी स्वयं रोती थी।

इको यणचि की अचि मुझको रोज उलझाया रहती थी
तस्मिन्निति निर्दिष्टे पूर्वस्य के माध्यम से क्या क्या कहती थी ।

पाणिनि का स्थाने$न्तरतम: सूत्र कभी स्थान नहीं बना पाया मेरे दिल में ।
अनचि च अच् से परे यर का द्वित्व करता रहा विकल्प में ।

देखो झलां जश झशि की वृत्ति, वृत्तिकार क्यों नहीं लिखा होगा ।
वृत्तिकार को झलां जश झशि का अर्थ स्पष्टम् दिखा होगा।

संयोगान्तस्य लोप: ने असहाय अपाहिज वर्णों को मार दिया था ।
पर अलो$न्त्यस्य का संविधान ये हत्या न स्वीकार किया था ।

पाणिनि का अलो$न्त्यस्य केवल अन्तिम वर्ण का भक्षण करता था।
वार्तिक यण: प्रतिषेधो वाच्य: से यणों के लिए आरक्षण करता था ।

— रामचन्द्र ममगाँई पंकज

रामचन्द्र ममगाँई पंकज

नाम- रामचंद्र ममगाँई । साहित्यिक नाम-पंकज । जन्मतिथि- 15 मई 1996 पिता का नाम- श्री हंसराम ममगाँई। माता का नाम- श्रीमति विमला देवी। जन्म स्थान-घनसाली टिहरी गढवाल उत्तराखंड। अस्थायी पता - देवपुरा चौक हरिद्वार उत्तराखण्ड। स्थाई पता- ग्राम मोल्ठा पट्टी ढुंगमन्दार घनसाली जिला टिहरी गढ़वाल उत्तराखंड पिन को- 249181 मो.न. 9997917966 ईमेल- [email protected] शिक्षा- शास्त्री और शिक्षाशास्त्री रचना साझा संकलन 1 अनकहे एहसास 2. एहसास प्यार का विशेष - चित् तरंगिणी त्रैमासिक पत्रिका का मुख्यसम्पादक । हिन्दी व संस्कृत के विभिन्न विषयों पर लेख व कविता अनेक पत्रिकाओं व अखबार में प्रकाशित ॥