लघुकथा

परिवर्तन

परिवर्तन
माँ तुम तो बात -बात में अनु की कमी निकलती रहती हो। क्या सच कहना कमी निकलना है ? बेटा। पता नहीं कहकर राजेश बाहर निकल गया। माँ बड़बड़ाती रह गई।आजकल की औलाद को भले की बात कहो,तो उल्टा सिर पर आती हैं। शादी से पहले तो सब ठीक होता हैं। शादी के बाद तो ये लड़के अपने नहीं रहते,गुलाम बन जाते हैं जोरू के।
बहुँ भी रोज- रोज की कहा- सुनी से तंग आ चुकी थी।
पर वह माँ जी से उलझना नहीं चाहती थी। आखिर वो घर की बड़ी थी। वह समझ नहीं पा रही थी। किस तरह रोज- रोज के क्लेश से छुटकारा पा सकें।
उसने उस दिन से माँ जी के काम की तारीफ करनी शुरू कर दी। जब भी माँ जी खाना बनाती, तो वह खुल कर तारीफ करती।माँ जी, आपके हाथों में तो अन्नपूर्णा का आशीर्वाद है।
तारीफ सुन कर माँ जी फूली ना समाती ।घर का माहौल धीरे -धीरे बदल रहा था। माँ जी को बहुँ प्यारी लगने लगी थी।
अंनु बेटी सारा काम सीख लो मेरे सामनें, पता नहीं में कब तक जिंदा रहूंगी ? अब से घर का सारा काम तुम ही किया करो। राजेश भी इस परिवर्तन पर हैरान था। अनु की सूझबूझ से पूरा परिवार बदल गया था। राजेश इस बदलाव से हैरान था।वह इसका कारण जानना चाहता था। अनु ने सिर्फ इतना कहा थोड़े से व्यवहार परिवर्तन से ये सब हो गया।राजेश मन्द मन्द मुस्करा रहा था।
राकेश कुमार तगाला
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राकेश कुमार तगाला

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