कविता

रिश्तों की कीमत

भौतिकता हो गई है हावी
रिश्तों की मर्यादा पर
हर रिश्ता सिकुड़ गया
और जलकर राख हुआ स्वार्थ की भट्टी में…

रिश्तों की कीमत
दौलत की तराजू पर आकी जाने लगी है
चेहरा देखकर
आदमी की औकात बताई जाने लगी है |

पद-पहुँच के हिसाब से
सम्मान के रंग में निखार आने लगा है
ऐ आदमी ! कब तक कोरा दिखावा दिखायेगा
सिर्फ दो गज कफन का टुकड़ा ही तो तेरे काम आयेगा |

मत तोल धन के तराजू पर रिश्तों को
क्या -क्या कर्त्तव्य हैं तेरे उनको पूरा कर
दिखावा, आडम्बर के जाल में मत फस
इंसान हो तो इंसानियत को मत भूलो |

जो तुझको भुलाये
तू उनको नजरअंदाज कर
कर्म कर नित और समय का इंतजार कर
भूलकर भी स्वयं को खत्म मत कर

स्वंय से लड़कर
समय को मात दे
कभी-कभी भूलकर अपनों को
तू अकेला ही जीवन जी…

— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

नाम - मुकेश कुमार ऋषि वर्मा एम.ए., आई.डी.जी. बाॅम्बे सहित अन्य 5 प्रमाणपत्रीय कोर्स पत्रकारिता- आर्यावर्त केसरी, एकलव्य मानव संदेश सदस्य- मीडिया फोरम आॅफ इंडिया सहित 4 अन्य सामाजिक संगठनों में सदस्य अभिनय- कई क्षेत्रीय फिल्मों व अलबमों में प्रकाशन- दो लघु काव्य पुस्तिकायें व देशभर में हजारों रचनायें प्रकाशित मुख्य आजीविका- कृषि, मजदूरी, कम्यूनिकेशन शाॅप पता- गाँव रिहावली, फतेहाबाद, आगरा-283111