कविता

मजदूर हूँ मजबूर नहीं

तन दुबला पर मन मजबूत है
महल अटारी निर्माता का,
कम मत आंको कृशकाय देख,
मनोबल, सजे शहरों के निर्माता का,
कर्म अपना करते रहना,
सदा पूर्वजों से सीखा है
दो रोटी दो वक्त मिले बस,
सादा जीवन को परखा हैं,
परिवार जिसका परमेश्वर हैं,
मजदूरी जिसका कर्म सदा,
गरीबी में भी आनन्द लुटा ले,
देश हित में खडा सदा,
अर्थ तन्त्र का मार चाहे,
फटे वस्त्रों में झलक अमीरी की,
किमत उनकी क्या आंकौंगे,
तुम, शहरों के विश्वकर्मा की,
मजदूर बना मजबूर नहीं मैं,
अमीरी के आशियाने का,
बिन मेरे तुम भोगोगे कैसे,
आनन्द महल, अटारी का,
सुनो सभ्य,असभ्य समझते,
कम कपडे किलकारि को,
मजदूर हूँ मजबूर नहीं मैं,
शर्म तुम्हारी समझदारी को ।।
— मदन सिंह सिन्दल “कनक”

मदन सिंह सिन्दल "कनक"

पिता- श्री शम्भु सिंह जी सिन्दल माता- श्रीमती गंगा कंवर जन्म-15 मई 1990 शिक्षा-PG IN ENGLISH, B.ED(ENGLISH, हिन्दी) सम्प्रति- अध्यापक (कवि,लेखक) पता- सादडी, तह-देसूरी, जिला- पाली, राजस्थान। दूरभाष-8094349248