गीतिका/ग़ज़ल

मालूम नही

दिन इक और जिया या गुजरा, मालूम नही|

खुद से खुश हूं या खफा खफा, मालूम नही||

सांसे घडी घडी देतीं, गवाही जिन्दगी की|

कितना जिंदा हूँ कितना मरा, मालूम नही||

खरीदी फकीर से कुछ दुआएं, हमने भी|

हुआ सौदे में घाटा या नफा, मालूम नहीं||

छोड पायल उसने, पैरों में घुंघरू पहने|

महज शौक है या इक़्तिज़ा, मालूम नहीं||

चल तो रहा बाजार में, बहुत जोर शोर से|

ये खोटा सिक्का है या खरा, मालूम नहीं||

मासूम निगाहों पर, यूं सब कुछ न लुटा|

उसने किस किसको है ठगा, मालूम नहीं||

कर लिया कुबूल खुशी से, जो भी मिला|

रहमत-ए-खुदा है या सजा, मालूम नहीं||

नज्में तो उसकी, बहुत पाकीजा लगी|

तहखाने दिल में क्या दबा, मालूम नहीं||

इलाजे क़ल्ब को बेकरार, है पलाश मगर|

हकीमे इलाही को रोग क्या, मालूम नही||

 

क़ल्ब – दिल

इक़्तिज़ा – मजबूरी

इलाही – खुदा

डॉ. अपर्णा त्रिपाठी

मैं मोती लाल नेहरू ,नेशनल इंस्टीटयूट आफ टेकनालाजी से कम्प्यूटर साइंस मे शोध कार्य के पश्चात इंजीनियरिंग कालेज में संगणक विज्ञान विभाग में कार्यरत हूँ ।हिन्दी साहित्य पढना और लिखना मेरा शौक है। पिछले कुछ वर्षों में कई संकलनों में रचानायें प्रकाशित हो चुकी हैं, समय समय पर अखबारों में भी प्रकाशन होता रहता है। २०१० से पलाश नाम से ब्लाग लिख रही हूँ प्रकाशित कृतियां : सारांश समय का स्रूजन सागर भार -२, जीवन हस्ताक्षर एवं काव्य सुगन्ध ( सभी साझा संकलन), पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित रचनायें ई.मेल : [email protected] ब्लाग : www.aprnatripathi.blogspot.com