कविता

शब्दों का सारथी

मै शब्दों का सारथी हूँ
उनका हमदर्द भी हूँ ,पारखी भी हूँ
मेरे शब्द मुझसे डरते नहीं
कभी मुझसे कतराते नहीं
उनकी मुझसे यारी भी है/ दोस्ती भी है
हाँ बाज़ दफा रूठ जरूर जाते हैं
कभी वजह छोटी सी होती है
कभी बड़ी भी होती है
अमूमन विवाद से बचता हूँ
जब भी कुछ रचता हूँ
मेरे भाव भी कुछ कम नहीं
साफ साफ कह देते हैं
शब्द मे दम नहीं
बदलने को कहते हैं
अब बारी शब्दों की होती है
बिलकुल नहीं मानते हैं
भावों की क्या बिसात ?
बगैर हमारे कर भी क्या सकते हैं
है हिम्मत तो कर के दिखाएँ
 तो फिर हम बताएं
खूब नए शब्द रचते रहो
बस शब्दकोश मे रखते रहो
और इनका हो भी क्या सकता है
हाँफते हुए दौड़ते रहेंगे
एक अदद उम्दा भाव की तलाश मे
यही उनकी नियति है
थक हार कर आ ही जाते हैं
न्यौता लेकर
मै मूक दर्शक की तरह
उनके इस तर्क कुतर्क को सुनता हूँ
कभी सुलगता भी हूँ
कभी कभी पिघलता भी हूँ
पर जल्दी ही इससे बाहर आ जाता हूँ
डोर हमेशा मेरे हाथ मे होती है
मेरे आदेश की अवमानना नहीं होती है
ईशारे को समझ आनन फानन
दोनों मे सुलह हो जाती है
फिर होता है अगाज़
बनने लगता है विचारों का कोलाज
भावों को आत्मसात कर लेते हैं शब्द
बन जाती है एक कविता
सृजन का सुख मन को खूब भिंगोता,,,,,,,,,
— राजेश कुमार सिन्हा 

राजेश सिन्हा

नाम –राजेश कुमार सिन्हा शिक्षा –स्नातकोत्तर (अर्थशास्त्र ) सम्प्रति –एक सरकारी बीमा कंपनी में वरिस्ठ अधिकारी निवास –मुंबई फिल्म और सामाजिक विषयों पर नियमित लेखन राष्ट्रीय स्तर की विभिन्न पत्र –पत्रिकाओं में हजार से अधिक रचनाएं प्रकाशित प्रकाशन –सिनेमा के सौ वर्ष पर “अपने अपने चलचित्र “ एक साझा काव्य संकलन –‘कुछ यूँ बोले एहसास’ का संपादन एक काव्य संकलन और “छोटा पर्दा –अतीत के आईने में” –प्रकाशनाधीन भारत सरकार के फिल्म प्रभाग के लिए दो दर्ज़न से अधिक डॉकयुमेंट्री फिल्मो के लिए कमेंट्री लेखन और एक फिल्म “दी ट्राइबल वीमेन आर्टिस्ट “ को नेशनल अवार्ड भी