आसन
आसन प्राणायाम से, देह रहे यह स्वस्थ।
चंचल चितवन शांत हो, आत्मा बने तटस्थ।।
आत्मा बने तटस्थ, मोह माया को छोड़े।
प्रभु सह बढ़ता प्रीत, जगत बंधन को तोड़े।।
कह अनंत कविराय, करो प्रतिदिन पद्मासन।
निज को दो आयाम, सबेरे उठकर आसन।।
*अनंत पुरोहित ‘अनंत’*