पिता परमेश्वर
मां का शृंगार हैं पिता,
शृंगार का राज हैं पिता,
सुहाग का आधार हैं पिता,
जन जन का अवलम्ब हैं पिता,
बच्चों का संबल हैं पिता,
पिता है तो बच्चा सनाथ हैं,
बिन पिता के हर कोई अनाथ है,
पेड़ की छांव, पर्वत सा अडिग है पिता,
परिवार का आकाश, अंतहीन प्यार हैं पिता,
हर घर की नींव का पत्थर हैं पिता,
दुनिया के हर रिवाज का दस्तूर हैं पिता,
मेरे शब्दों में वो क्षमता नही की आपकी महिमा बान्ध सकूँ,
सच्च कहूँ हर घर का परमेश्वर हैं पिता।।
— मदन सिंह सिन्दल “कनक”