हे भारत के कवि!
(सरसी छंद)
नयी पीढ़ी न चाहे नखशिख, न विरह या श्रंगार
इसे चाहिए उत्साह से छने, वीर रस के उद्गार
लेखनी से कर संबल और, जिजीविषा ही प्रदान
निभाना कर्तव्य रचनाधर्मी! कर राष्ट्र का उत्थान।1।
भीरुओं के हिय भी जाएँ, जिन वचनों से डोल
छंद पौरुष के संवाहक, हे कवि! अब तू बोल
वीरत्व से भरी बातें सुना, निर्भीक शीश उठाय
प्रवृत्त हों देशवासी कर्म में, संदेशा यह पाय!।2।
राष्ट्र जागरण करे वही जो, जगाए मन में आस
लुटाकर अमृत नवजाग्रति का,बुझाए जन की प्यास
इसी उद्देश्य हेतु प्रारम्भ हो, कर्मपथ का अर्चन
छोड़ मीठे मीठे वचन कर, सिंहनाद -सा सर्जन।3।
नव पीढ़ी को वीरत्व देना, यही है एक सुध्येय
जिसे पाने को करना होगा, वीर रस से स्नेह
भारत निर्माण में प्रदत्त करने,अपना लघुतर भाग
धारण कर शिव संकल्प मन में,राष्ट्रकवि! तू जाग!!
आँखों में गौरव-द्युति भरकर,गर्व से वक्ष तान
सीखा बंधु देशवासियों को,स्वयं पर अभिमान
संवाहक बन पहुंचा उन्हें, क्रान्ति पूरित विचार
भारत निर्माण का यह सपना, हो जाये साकार!
-क्षितिज जैन “अनघ”