क्या ऑनलाइन क्लासें तमाशा हैं?
आजकल सुर्खियों पर है ” नो स्कूल – नो फीस ” मानो सारी आपदा बच्चों की स्कूल फीस पर ही आई है। घर घर में पकवान बने, शादियां हो रही हैं, ऑनलाइन शॉपिंग हो रही है, ऑनलाइन फूड आ रहे हैं, शराब पार्टी चल रही है और बाकी बहुत कुछ है जो मजे से चल रहा है । विरोध होता है शिक्षा का । आश्चर्य की बात है न …!
ऑनलाइन क्लासेस तमाशा नही है,बल्कि ज्यादा मेहनत है इस तरह क्लास लेने में । स्कूल आपके घर आकर आपके बच्चे को शिक्षा दे रहा है । क्या सुविधा कम है ? पूरी सुरक्षा के साथ बच्चे आपकी नजरों के सामने पढ़ रहे हैं बेकार के काम में नहीं लगे हैं, क्या यह सुकून की बात नहीं?
ऑनलाइन काम हर जगह हो रहा है, यह समय की माँग है जिसे स्वीकारना करने की जरूरत है, बहिष्कार करने की नही । जरा सोचिए, सालभर अगर आपका बच्चा पढेगा नही तो क्या करेगा? आजकल पैरेंट्स खुद ही बच्चों को मोबाइल देना अपनी शान समझते हैं । अब बच्चे उस पर करेंगे कया ? पब जी खेलेंगे, यू ट्यूब पर मौज करेंगे । पैरेंट्स अपने बच्चे को मोबाइल के अति प्रयोग से रोकने में असमर्थ हैं । ऐसे में अगर वह इस माध्यम से कुछ पढ़ – लिख रहा है, शिक्षा पा रहा है तो इसमें गलत क्या है?
अगर नो स्कूल नो फीस की बात की जाए , तो मान लीजिए पैरंट्स फीस नही देते इससे मैनेजमेंट टीचर्स और बाकी कर्मचारी भूखों नही मरेंगे,किन्तु अगर बच्चे साल भर ज्ञान से वंचित रहे तो उनका बौद्धिक और नैतिक पतन सुनिश्चित है । एक बार बर्बादी के गर्त में गिरने के बाद लाख जतन करके भी वापस नही लाया जा सकता । पैरेंट्स अपने ही बच्चे को स्कूल से घसीट कर बाहर कर रहे हैं । शिक्षा अनिवार्य है इसलिए शिक्षक पढ़ा रहे है, सिर्फ पैसों के लिए नही । न जाने कयों और कैसे यह मानसिकता बन गई कि ऑनलाइन कलासेस फीस वसूलने के लिए ली जा रही हैं । क्यों शिक्षकों का समर्पण दिखाई नहीं देता ?
सरकारी स्कूल की पढ़ाई का स्तर सभी जानते हैं, इसलिए अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल में भेजते हैं, और जो प्राइवेट स्कूल में अपने बच्चे को भेज रहा है वह गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन नही कर रहा है । फिर क्यों अपने नैतिक कर्तव्य से मुंह से फेरना? अगर वास्तव में कोई फीस नही दे सकता वह खुलकर स्कूल में अपनी बात विनम्रता से रखे । प्राइवेट स्कूलों में पैरंट्स कई कई महीनों तक फीस नहीं देते, उन्हे झेलता है मैनेजमेंट, उनके बच्चों अपमानित करके निकाल बाहर नही किया जाता बल्कि ससम्मान अन्य बच्चों के साथ शिक्षा दी जाती है । अपने टीचर्स को भी समय पर सैलरी देता है मैनेजमेंट । अब अगर आज पहली बार पैरेंट्स को अपना फर्ज निभाने का समय आया तो आंदोलन पर उतर आए ?
स्वयं विचार करें ऐसे पैरेंट्स के बच्चे क्या व्यवहारिक शिक्षा प्राप्त करेंगे ? कौन सा बीज बोया जा रहा है उनके नन्हे मस्तिष्क में । सालभर बाद या जब स्थिति सामान्य हो तब आपका बच्चा स्कूल जाएगा, अपने शिक्षक के लिए कैसी भावना मन में रखेगा? यह सब विचारणीय है । मत भूलिए, बच्चा सिर्फ स्कूल जाकर नहीं सीखता, वह हर पल सीख रहा । वक्त अच्छा हो या बुरा वह तो कट ही जाएगा, विचार कीजिए एक अशिक्षित बच्चा कल किस रूप में सामने आएगा ।
— गायत्री बाजपेई शुक्ला