बरखा बहार
आई है बरखा बहार
लाई बूदों की फूहार
काली घटा उमर उमर
खूब बरसे नगर नगर।
काली- काली है बदली
कड़क-कड़क गरजती
धनघोर होके ये दखो
कितनी जोर है बरसती।
लबा लब हुए नदी नाले
फैले चहुँ ओर हरियाली
श्रृंगार कर धरती देखो
चका-चक है चमकती ।
मेधो की गर्जना और
मेढक की टर्र-टर्र
घूप होते बादलो पर
संगीत सी है लगती।
ऐ मौसम तेरा शुक्रिया
जिसने यह बर्षा बनाया
धरती पर सभी जीवोका
मुख्य आधार बनाया।
बारिस की बूँदो में
गजब की शक्ति है
धरती पर जीवन की
यही सच्ची भक्ति है।
— आशुतोष