कुछ भी हो
कैसी हो गजल जलालत कुछ भी हो
दलों की सियासत हजामत कुछ भी हो ।
जानवरों से भी बदतर है ये सब लोग ,
मरघट में बैठकर अदावत कुछ भी हो ।
देख रहे आँखें मूँद सरहद के सब नजारे ,
तू-तू मै-मै में लगे है नजाकत कुछ भी हो ।
मत उड नेपाल-पाक मसनवी राग मे ,
चाहे चीन की नजरें हिमाकत कुछ भी हो ।
“वाग्वर” ये हिन्दूजा सूरज नहीं डूबेगा ,
जयजन्दों की रागे बगावत कुछ भी हो ।।