लघुकथा

अपराध बोध

कामना, तुम्हारी रोज-रोज की खटपट से मेरा मन परेशान हो गया है।तुम्हारी लालसाओं का कोई अंत ही नहीं है।क्यों करूँ मैं अपनी चाहते कम?शादी से पहले तो तुम बड़ी बातें करते थे।रानी बना के रखूँगा, तुम्हारी हर इच्छा पूरी करूँगा।मेरी प्रेरणा से ही तुमनें सेल्स-टैक्स में जॉब प्राप्त की है।
ठीक है।अब कब तक तुम इसकी कीमत वसूल करती रहोगी।पर कामना हार मानने को तैयार नहीं थी।पता नहीं इनको क्या हो गया है?अगर थोड़ी बहुत ऊपर की कमाई कर लोगें तो क्या हो जाएगा,सभी करते हैं आजकल तो?सामने वाले शर्मा जी को ही देख लो,घर में सभी चीजें बढ़िया ब्रांड की है।बड़ा टेलीविजन,बड़ा फ्रिज और नई लाल रंग की चमचमाती कार।
पता नहीं तुम्हें कब समझ आएगी,लोगों के इतने काम करवाते हो?बदले में थोड़ा बहुत अपने बारे में भी सोच लो।अच्छा छोड़ो, एक कप चाय बना दो,सिर दर्द से फटा जा रहा है।अच्छा क्या सोचा कार के बारे में।तुम फिर शुरू हो गई।अपने रुतबे का इस्तेमाल करो,कार तो चुटकियों में आजएगी।कामना ने कहा।
बन्द करो अपना रिश्वत महापुराण,थक गया हूँ।रोज एक ही जिद्द,मान जाओ,कामना।क्यों, कल जो सेठ जी घर आए थे? बड़ी मिन्नते कर रहे थे,उनका काम करवा दो।वो आपको अच्छी खासी मोटी रकम देने करने को तैयार थे।
चुप करो हमारे घर में किस चीज की कमी है,जो तुम मुझें रिश्वत लेने को मजबूर कर रही हो।ठीक है।कल सेठ जी से बात करता हूँ, अब तो खुश हो।कामना का चेहरा चमक उठा।
रात को कामना बुरी तरह चिल्ला उठी।छोड़ दो,मेरा पति बेकसूर है।उन्होंने कोई रिश्वत नहीं ली है।जब पति ने उसे झकझोर दिया।क्या हुआ,तुम इतनी घबराई क्यों हो?वो तुम्हें पुलिस पकड़ कर ले जा रही थी।मैं तो तुम्हारे पास हूँ।नहीं आपको कोई बुरा काम करने की जरूरत नहीं है।सारा दोष मेरा है,मेरी ही इच्छाए,वह अपराध बोध की ग्लानि से भर उठी।
मुझें माफ कर दो,मैं लालच में अन्धी हो गई थी।वह, कामना की ऊपर नीचे होती साँसों को महसूस कर रहा था और भगवान को धन्यवाद दे रहा था।
राकेश कुमार तगाला

राकेश कुमार तगाला

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